वार्षिक संगीतमाला में बात हो रही है फिलहाल वैसे गीतों की जो भले ही प्रथम पच्चीस में अपनी जगह नहीं बना सके पर जिन्होंने चुने हुए गीतों को कड़ी टक्कर दी। इस कड़ी के पहले भाग में मैंने आपको मिलवाया था आठ ऐसे गीतों से जिनमें से सात का मूड रूमानियत भरा था पर आज जिन गीतों की चर्चा मैं आपसे करूँगा उनमें इसके आलावा एक मस्ती भी है जो गीत की रिदम के साथ आपको थिरकने पर मजबूर कर देती है।
आजकल डांस नंबर का मतलब पंजाबी बोली से मिश्रित ऐसे गीतों से हो गया हैं जिसके संगीत तेज बीट्स पर आधारित हो और साथ में रैप का तड़का हो। अगर आपकी पसंद भी ऐसी है तो माफ कीजिएगा ये पोस्ट आपके लिए नहीं है। मेरे लिए तो लोकधुनों की सुरीली तान भी थिरकने का सबब बनती हैं और पाश्चात्य संगीत से सजी धुनें भी। झूमने झुमाने वाली धुनों के के साथ चुहलबाजी करते शब्द हों तो वो मेरे लिए सोने पर सुहागा का काम करते हैं। आज "एक शाम नेरे नाम" पर साल की इस आखिरी पोस्ट में आप की थाली में पाँच अलग अलग जायकों वाले गीतों भरे व्यंजन परोसने का इरादा है। तो क्या इनका स्वाद लेने के लिए तैयार हैं आप?
मस्ती का रंग घोलने के लिए पहला गीत जो मैंने आपके लिए चुना है वो है फिल्म "पटाखा" से। पटाखा दो ऐसी बहनों की कहानी है जो आपस में हमेशा लड़ती झगड़ती रहती हैं। फिल्म में एक परिस्थिति है जिसमें एक दूसरे के बलमा को नीचा दिखाने की दोनों बहनों में होड़ है। विवाह जैसे उत्सवों में आपने देखा होगा कि गाँवों में गाली गाए जाने की परंपरा होती है। गुलज़ार ने गालियो की उस भाषा को थोड़ी सौम्यता बरतते हुए विशाल भारद्वाज की धुन पर एक शरारत भरा गीत रचा है जो रेखा भारद्वाज और सुनिधि चौहान की आवाज़ में चुहल का एक अनूठा रूप प्रस्तुत करता है।
एक तेरो बलमा रे एक मेरो बलमा
तेरो गुंडों बलमा रे मेरो नेक बलमा
मैं तो पर्दो में ढांप लूँगी मेरो बलमा
नंगा घूमेगो गलियों में तेरो बलमा
अंधाधुन एक सस्पेंस थ्रिलर थी। फिल्म की कहानी में तो जो दुविधा थी वो तो थी ही, मुझे तो इस फिल्म का नाम भी बड़ा अजीब लगा। अगर फिल्म का नाम अंधाधुंध था तो फिर इसे Andhadhun क्यों लिखा गया और अंधाधुन जैसा कोई शब्द हिंदी में तो है नहीं। चलिए फिल्म की कहानी की तरह ये सस्पेंस भी बना रहे। फिल्म तो ख़ैर काफी सराही गयी, साथ ही अमित त्रिवेदी का संगीत भी पसंद किया गया। आपका तो पता नहीं पर मुझे तो उनके इस गीत से मिलना अच्छा लगा :)
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वैसे इन पाँचों गीतों में से जो गीत पच्चीस गीतों की सूची के सबसे पास था वो था फिल्म पैडमैन का गीत सयानी। एक लड़की के रजस्वला होने की खुशी को लोकगीतों सी शैली में सजी धुन और मजेदार बोलों से अमित त्रिवेदी और कौसर मुनीर की जोड़ी ने मिलकर एक ऐसा रूप दिया है कि इसे सुनकर तन और मन दोनों तरंगित हुए नहीं रह पाते। ये गीत कुछ यूँ शुरु होता है..
देखो देखो तितली बदल रही रंग
होते होते होते होते हो रही पतंग
नयी नयी सी उठे रे मन में उमंग हो..
उड़ उड़ जाये हाय सखियों के संग
लाली लगाई के रंगीली हो गयी
बिंदिया सजाई के चमकीली हो गयी
यानी यानी यानी यानी लड़की सयानी हो गयी
आज के गीतकारों में अमिताभ भट्टाचार्य एक ऐसे गीतकार हैं जो हर प्रकृति के गीत में अपनी लेखनी का कमाल दिखा जाते हैं। भले ही ठग आफ हिंदुस्तान ने आपके पैसे ठग लिए हों पर अजय अतुल के झुमाने वाले संगीत पर अमिताभ द्वारा सुरैया के लिए लिखे ये चटपटे बोल एकदम पैसा वसूल हैं। यकीन ना हो ज़रा मुलाहिजा फरमाइए
तू है सौतन मेम की, पाठशाला प्रेम की
हम अँगूठा छाप इम्तेहान लेगी क्या
धड़कनों की चाल पे इस कहरवा ताल पे
ले चुकी आलाप उसपे तान लेगी क्या
सुरैया जान लेगी क्या बस कर बस कर यार सुरैया. जान लेगी
हाय रे, घर सुरैया जान के, सर झुका के आये हो
दे चुकी है दर्शन अब परसाद देगी क्या
सबका दिल बहला चुकी, ठुमरियाँ भी गा चुकी
बाँध के अब साथ में औलाद देगी क्या
सुरैया जान देगी क्या...e
मस्ती भरे ये तराने आपको हँसी खुशी के कुछ पल दे गए होंगे ऐसी उम्मीद हैं। अब इस साल मैं आपसे यहीं विदा लेता हूँ। एक शाम मेरे नाम के पाठकों को नए साल की हार्दिक बधाई! अगले साल की शुरुआत होगी साल के पच्चीस चुनिंदा गीतों की विभिन्न कड़ियों के साथ।
8 टिप्पणियाँ:
हनी सिंह के जमाने में ये सब गाना हम जैसेलोगों से छूट जाती हैं।
धन्यवाद आपको की इनसब से रूबरू करवाये।
उम्दा पच्चीस के इंतेजार में।
"...माफ कीजिएगा ये पोस्ट आपके लिए नहीं है।"
"...आज के गीतकारों में अमिताभ भट्टाचार्य एक ऐसे गीतकार हैं"
'आप से मिलकर'को छोड़कर मैंने इनमें से कोई भी गाना दुबारा नहीं सुना, न सुनूँगा।
शायद !
ब्लाग पर पधारने और अपने विचार व्यक्त करने का शुक्रिया श्याम। चुने हुए पच्चीस गीत हर तरह के हैं। कहीं शास्त्रीयता है तो कहीं कोई खूबसूरत रिदम। कहीं पीड़ा के स्वर हैं तो कहीं प्यार भरे शब्दों का मोह जाल तो कहीं भक्ति का बहता दरिया। आशा है ये संगीत यात्रा कुछ ऐसे गीतों से तुम्हारी मुलाकात करा दे जो तुम्हारी पसंद के हों।
मन्टू: मतलब ये पोस्ट तुम्हारे लिए नहीं है। :)
पांचो गीत अच्छे हैं। मुझे एक तेरो बलमा.., और हल्का-हल्का सुरूर..ज्यादा अच्छे लगते हैं। बलमा.. जैसे गीतों पर रेखा भरद्वाज की आवाज एकदम फिट लगती है। सुनिधि चौहान हर तरह के मूड में अच्छी लगती हैं।
Manish हल्का हल्का सुरूर तो तुम्हारी सूची में भी था। वैसे इस साल कई गीत नुसरत साहब की कव्वालियों के मुखड़े को लेकर बनाए गए हैं।
फिल्मी गानों के लिहाज से यह साल निराशाजनक रहा। रीमिक्स और recreated गाने ज्यादा आए। अजय अतुल से उम्मीदे थी लेकिन वो ज्यादा कमाल नही दिखा पाए
वैसा मेरा अनुभव नहीं रहा इस साल के गीतों के लिए 🙂। रीमिक्स रिक्रियेटेड गीत जरूर ज्यादा आए पर अच्छे गीतों की भी कमी नहीं रही।
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