इस साल की संगीतमाला ने मुझे कई नयी प्रतिभाओं से मिलने का मौका दिया। इनमें कुछ गीतकार, कुछ संगीतकार और कुछ गायक थे और कुछ तीनों ही एक साथ थे। वैसे ये अचरज करने की बात नहीं है क्यूँकि अगर आप पश्चिमी संगीत को थोड़ा बहुत सुनते हैं तो वहाँ गीत फिल्मों की बजाय एक बैंड के तहत लोगों तक पहुँचते हैं जिसमें तीन चार या उससे कम कलाकार होते हैं । एक स्थिति ये भी होती है कि आप खुद ही गीत लिखते हैं, उसे संगीतबद्ध करते हैं और फिर स्टेज या स्टूडियो में उसे गा भी देते हैं।
हिंदी फिल्म संगीत में भी ऐसे कलाकारों का आगमन हो रहा है जो इस तरह के संगीत को सुन कर पले बढ़े हैं। आज जिस शख़्स से आपको मिलवाने जा रहा हूँ वो गीत लिखने और गिटार बजाने में तो माहिर हैं ही साथ ही अपनी विशिष्ट शैली में उसे गा भी लेते हैं। मैं बात कर रहा हूँ प्रतीक कुहाड़ की जिनका कारवाँ फिल्म का गीत आज इस पायदान पर बज रहा है।
हिंदी फिल्म संगीत में भी ऐसे कलाकारों का आगमन हो रहा है जो इस तरह के संगीत को सुन कर पले बढ़े हैं। आज जिस शख़्स से आपको मिलवाने जा रहा हूँ वो गीत लिखने और गिटार बजाने में तो माहिर हैं ही साथ ही अपनी विशिष्ट शैली में उसे गा भी लेते हैं। मैं बात कर रहा हूँ प्रतीक कुहाड़ की जिनका कारवाँ फिल्म का गीत आज इस पायदान पर बज रहा है।
प्रतीक का संगीत के प्रति झुकाव शुरु से था ऐसा कहना मुश्किल है। हाई स्कूल में पहली बार उन्होंने गिटार सीखने की कोशिश की पर असफल हुए। फिर पढ़ने के लिए वो जयपुर से न्यूयार्क चले गए। वहाँ सबसे पहले वे इलियट स्मिथ के संगीत से खासा प्रभावित हुए। फिर बॉब डिलन को काफी सुना। इन गायकों ने उनमें गिटार बजाने की इच्छा फिर से जागृत कर दी। न्यूयार्क शहर के परिवेश ने एक ओर तो खुले ढंग से सोचने की आजादी दी तो दूसरी ओर वो वहाँ वे जो भी कर रहे थे उस पर कोई टीका टिप्पणी करने वाला नहीं था। वो उस विशाल महानगर में रहने वाले एक छोटे से कलाकार थे जो अपनी राहें खुद बना रहा था।
स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो भारत लौटे। यहाँ उन्होंने अपने कुछ गाने रिकार्ड किए और फिर अपना एलबम In Tokens and Charms रिलीज़ किया। इस एलबम के लिए विश्व भर में प्रशंसा बटोरीं। उन्हें MTV Europe संगीत सम्मान और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गीत लिखने की प्रतियोगिता में पहला स्थान मिला। इन इनामों के बदौलत उन्हें विश्व में कई जगह अपने गीतों को सुनाने का मौका मिला।
प्रतीक कुहाड़ |
हिंदी फिल्मों में प्रतीक कुहाड़ का प्रवेश एक गीतकार के रूप में फिल्म बार बार देखो के गीत खो गए हम कहाँ से हुआ और इस साल उन्होंने कारवाँ के दो गीतों में गायिकी, संगीत देने और गाने की तिहरी भूमिका निभाई। मैंने इस गाने के आलावा हिंदी में रिकार्ड किए उनके अन्य गीतों को भी सुना और पाया कि उनकी रचनाओं उनके शब्दों के इर्द गिर्द घूमती है। वो मूलतः एक गीतकार ही हैं। अपने शब्दों पे ही वे धुन रचते हैं जिनमें एक सहज सी मधुरता प्रवाहित होती है। उनकी गायिकी किसी सधे गायक की नहीं है पर उसका कच्चापन ही उनका यूएसपी है जो युवाओं को भाता रहा है।
कारवाँ के इस गीत को दो भागों में बाँट सकते हैं। गीत का पहला हिस्सा किरदार की उस मनोदशा को बताता है जहाँ किरदार की ज़िदगी बस यूँ ही कट रही है। उसकी कोई दिशा नहीं है। प्रतीक इस मनोदशा को चित्रित करने के लिए जख्मी ज़मीं, उलझी ख्वाहिशों. ठहरी नज़रें और रुकी घड़ियों का सहारा लेते हैं। हालांकि इन बिंबों के साथ उन्होंने हँसती पलकों और सँभलती बातों का प्रयोग क्यूँ किया ये मेरी समझ से परे है।
साँसें मेरी अब बेफिकर हैं, दिल में बसे कैसे ये पल हैं
बातें सँभल जा रही हैं, पलकों में यूँ ही हँसी है
मन में छुपी कैसी ये धुन है, हर ख्वाहिशें उलझी किधर हैं
पैरों से ज़ख्मी ज़मीं है, नज़रें भी ठहरी हुई हैं
है रुकी हर घड़ी, हम हैं चले राहें यही
गीत का अगला हिस्सा निराशा के अंधकार के बीत जाने और आशा की नई किरण दिखने की बात करता है। प्रतीक की काव्यत्मकता यहाँ प्रभावित करती है। वो कहते हैं कि पहले मंजिलें उन परछाइयों की तरह थीं जो दिन बीतते ही साथ छोड़ देती हैं लेकिन अब रातों ने भी उन्हें गले लगा लिया है, शामें उनका आलिंगन कर रही हैं। मेरा अन्तरमन ही मुझे हौसले दे रहा है मेहनत करने का, मदहोशी के आलम से यथार्थ की ज़मीं पर कदम रखने का। उनके कानों में खिलते गीत है और कदमों में आग है लक्ष्य तक पहुँचने की,
ये मंज़िलें हमसे खफ़ा थी, इन परछाइयों सी बेवफ़ा थी
बाहों में अब खोई हैं रातें, हाथों में खुली हैं ये शामें
ये सुबह है नयी, हम हैं चले...
मैं अपने ही मन का हौसला हूँ, है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ
मैं पीली सहर का नशा हूँ, मैं मदहोश था, अब मैं यहाँ हूँ
साँसें मेरी अब बेफिकर हैं, दिल में बसे कैसे ये पल हैं
नग्मे खिले हैं अब सारे, पैरों तले हैं मशालें
थम गयी है ज़मीं, हम हैं चले...
प्रतीक कुहाड़ का गीत आज इस गीतमाला में है तो उसमें उनके बोलों के साथ सहज बहते हुए संगीत का भी हाथ है। गीत पियानों की मधुर धुन से शुरु होता है। पहले इंटरल्यूड में गिटार की धुन झूमने पर विवश करती है और जब तक वो गीत की पंक्ति मैं अपने ही मन का हौसला हूँ... तक पहुँचते है सुनने वाले के मन में उर्जा का संचार होने लगता है। मेरे ख्याल से ऐसा होना निराशा से आशा की ओर ले जाने वाले इस गीत की सार्थकता है। तो आइए सुनते हैं इस गीत को।
इस गीत के साथ मेरी मस्ती का एक मूड यहाँ भी 😃😃
वार्षिक संगीतमाला 2018
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता
2. जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3. ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4. आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5. मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
6. तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7. नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़
8. एक दिल है, एक जान है
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा
21. जिया में मोरे पिया समाए
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता
2. जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3. ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4. आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5. मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
6. तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7. नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़
8. एक दिल है, एक जान है
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा
21. जिया में मोरे पिया समाए
7 टिप्पणियाँ:
बेहद खूबसूरत गीत।
हाँ बिल्कुल अमित! ।वैसे आपने प्रतीक को पहली बार सुना या पहले भी सुनते आए हैं?
मैं अपने ही मन का हौसला हूँ, है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ...!
बहुत सुंदर, कुछ कुछ पीकू फिल्म के गीतों की याद दिलाता है...
शुक्रिया मनीष जी ऐसे गीतों को शेयर करने के लिए जिन पर कोई इतना ध्यान नहीं देता...
वे मेरे पसंदीदा गीतकारों में से हैं।
गीत पसंद करने के लिए शुक्रिया कपिल। बहुत सारे गीत ऐसे होते हैं जो अच्छे होने के बावजूद टीवी के पर्दे और बाकी प्रमोशनों से दूर रह जाते हैं। ये भी ऍसा ही एक गीत है। वैसे युवाओं में प्रतीक की अच्छी पैठ है।
मनीष जी, आपने अच्छा लिखा है. उनके गाने के बोल थोड़े कंफ्यूज से हैं पर अच्छे लगते हैं. इस गाने को पहली बार सुनने के बाद एक पूरे दिन कई बार सुना था. फिर इंटरनेट से प्रतीक के बारे मे जानकारी ली और उसके कई गाने सुने. वो अंग्रेजी मे भी अच्छा लिख और गा लेते हैं. आज कल cold/mess काफी सुना जा रहा है. टैलेंट काफी है और उम्मीद बढ़ा दी है उन्होंने. वैसे कारवां एक अच्छी मूवी भी है जो कम ही देखी गई.
हाँ सुमित मैं भी उनके बारे में ये सब इस गीत के लिए की गयी रिसर्च के दौरान ही जान पाया। उनकी आवाज़ से ज्यादा मुझे उनकी धुनें ज्यादा मधुर लगीं।
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