संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर विराजमान है संगीतकार रोचक कोहली, गीतकार मनोज मुन्तशिर और गायक आतिफ असलम की तिकड़ी "बत्ती गुल मीटर चालू" के इस गीत के साथ, जिसका मुखड़ा नुसरत फतेह अली खाँ की कव्वाली से प्रेरित है। लगता है मेरे रश्के क़मर के पिछले साल हिट हो जाने के बाद नुसरत साहब की कव्वालियों को फिर से बनाने की माँग, निर्माताओं ने बढ़ा दी है। यही वजह कि इस साल फिल्म Raid में सानू इक पल चैन ना आवे , फन्ने खान में ये जो हल्का हल्का सुरूर है और सिम्बा में तेरे बिन नहीं लगदा दिल ढौलना की गूँज है।
मैं पुराने गीतों के फिर बने वर्जन को मूल गीतों की अपेक्षा कम अहमियत देता हूँ क्यूँकि फिल्म संगीत में चली ये प्रवृति कलाकारों की रचनात्मकता को कम करती है। ये सही है कि एक जमे जमाए गीत को फिर से recreate कर लोकप्रियता हासिल करना आसान नहीं क्यूँकि सुनने वाला उसकी तुलना तुरंत पुराने गीत से करने लगता है पर ये भी उतना ही सही है कि ऐसे गीत पुराने गीतों के लोकप्रिय मुखड़ों का इस्तेमाल कर लोगों के ज़ेहन में जल्दी बैठ जाते हैं। बहरहाल इसके बावजूद भी अगर ये गीत इस गीतमाला में है तो उसकी वजह इसके सहज पर शायराना बोल हैं। वैसे तो रोचक और आतिफ ने इस गीत में अपनी अपनी भूमिकाएँ निभायी हैं पर इसी कारण से मैं इस गीत का असली नायक मनोज मुन्तशिर को मानता हूँ।
मनोज मुन्तशिर एक शाम मेरे नाम की संगीतमालाओं के लिए कोई नए नाम नहीं हैं। पिछले चार पाँच सालों में उनके दर्जन भर गीत मेरी संगीतमाला में शामिल रहे हैं। मनोज की खासियत है कि वो रूमानियत को सहज शब्दों की शायराना चाशनी में इस तरह घोलते हैं कि बात सुनने वाले तक तुरंत पहुँच जाती है। यही वजह है कि उनकी लोकप्रियता युवाओं में इतनी ज्यादा है। तेरे संग यारा, फिर कभी, ले चला, तेरी गलियाँ जैसे उनके दर्जनों गीतों की लोकप्रियता उनके शब्दों की मुलायमियत में छिपी है। मैंने ये भी देखा है कि जब जब इस ढर्रे से निकल कर भी उन्होंने लिखा है, कमाल ही किया है। मैं तुझसे प्यार नहीं करती, बड़े नटखट है तोरे कँगना, माया ठगनी, है जरूरी जैसे गीतों को मैं इसी श्रेणी का मानता हूँ। आशा है आने वाले सालों में मनोज को कुछ ऐसी पटकथाएँ भी मिलेंगी जहाँ उनके शब्दों को विविधता लिए गहरे और पेचीदा मनोभावों में डूबने का मौका मिले।
मनोज मुन्तशिर और रोचक कोहली |
तो लौटें इस गीत पर। आपको याद होगा कि पिछले साल भी नुसरत साहब की कव्वाली मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र को भी मनोज ने अपने शब्दों मे ढालकर खासी लोकप्रियता अर्जित की थी। अगर आप यहाँ भी नुसरत साहब की मूल कव्वाली सुनने के बाद ये गीत सुनेंगे तो हुक लाइन को छोड़ देने से लगेगा कि आप एक नया ही गीत सुन रहे हैं।
मनोज मुन्तशिर का कहना है कि कई बार सीधे सहज शब्दों की ताकत का सही इस्तेमाल नहीं हो पाता और मैंने इस में यही करने की कोशिश की है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुझे इस गीत की इन पंक्तियाँ में लगता है कि आते जाते थे जो साँस बन के कभी.. वो हवा हो गए देखते देखते। वाह भाई साँसों को हवा हो जाने के मुहावरे से इस खूबसूरती से जोड़ने के लिए वो दिल से दाद के काबिल हैं।
मनोज मुन्तशिर का कहना है कि कई बार सीधे सहज शब्दों की ताकत का सही इस्तेमाल नहीं हो पाता और मैंने इस में यही करने की कोशिश की है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुझे इस गीत की इन पंक्तियाँ में लगता है कि आते जाते थे जो साँस बन के कभी.. वो हवा हो गए देखते देखते। वाह भाई साँसों को हवा हो जाने के मुहावरे से इस खूबसूरती से जोड़ने के लिए वो दिल से दाद के काबिल हैं।
रज्ज के रुलाया, रज्ज के हंसाया
मैंने दिल खो के इश्क़ कमाया
माँगा जो उसने एक सितारा
हमने ज़मीं पे चाँद बुलाया
जो आँखों से.. हाय
वो जो आँखों से इक पल ना ओझल हुए
लापता हो गए देखते देखते
सोचता हूँ..सोचता हूँ कि वो कितने मासूम थे
क्या से क्या हो गए देखते देखते
वो जो कहते थे बिछड़ेंगे ना हम कभी
अलविदा हो गए देखते देखते
सोचता हूँ..
एक मैं एक वो, और शामें कई
चाँद रोशन थे तब आसमां में कई
यारियों का वो दरिया उतर भी गया
और हाथों में बस रेत ही रह गयी
कोई पूछे के.. हाय
कोई पूछे के हमसे खता क्या हुई
क्यूँ खफ़ा हो गए देखते देखते
आते जाते थे जो साँस बन के कभी
वो हवा हो गए देखते देखते
वो हवा हो गए.. हाय..ओह हो हो..
वो हवा हो गए देखते देखते
अलविदा हो गए देखते देखते
लापता हो गए देखते देखते
क्या से क्या हो गए देखते देखते
जीने मरने की हम थे वजह और हम ही
बेवजह हो गए देखते देखते..
सोचता हूँ..
रोचक कोहली की गिटार पर महारत जग जाहिर है। पिछले साल आप उनका कमाल लखनऊ सेंट्रल के गीत मीर ए कारवाँ में सुन ही चुके हैं। इस गीत का प्रील्यूड भी उन्होंने गिटार पर ही रचा है। ताल वाद्यों की बीट्स पूरे गीतों के साथ चलती है तो आइए सुनते हैं ये गीत आतिफ असलम की आवाज़ में। इस नग्मे को फिल्माया गया है शाहिद और श्रद्धा कपूर की जोड़ी पर।
वार्षिक संगीतमाला 2018
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता
2. जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3. ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4. आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5. मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
6. तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7. नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़
8. एक दिल है, एक जान है
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा
21. जिया में मोरे पिया समाए
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता
2. जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3. ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4. आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5. मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
6. तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7. नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़
8. एक दिल है, एक जान है
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा
21. जिया में मोरे पिया समाए
13 टिप्पणियाँ:
एक सवाल का जवाब चाहिए मुझे-
आतिफ़ असलम को सारे बढ़िया गाने ही क्यों मिल जाते हैं गाने को या वो जिस गाने की आवाज़ बन जाते हैं वो बढ़िया हो जाता है ?
मनोज सर, वाक़ई, बढ़िया खिलाड़ी है लफ़्ज़ों के। मुझे लगता है कभी कभी,उनके बहुत से नग़में पर बहुतों का ध्यान नहीं जाता।
इस गाने की ख़ास बात मुझे ये लगी कि जब अंतरा शुरू होता है तब 2-3 लाइन्स तक ज़्यादा म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट प्रयोग नहीं होता, फ़िर जब अचानक से बीट शुरू होता है,तब :)
रोचक कोहली, के बारे में जानकर अच्छा लगा।
आतिफ असलम की आवाज़ में एक अलग तरह की कशिश है ही पर जब तक संगीत और बोल अच्छे नहीं होंगे गायक कुछ खास नहीं कर सकता है। यही कारण है कि आतिफ के कई गीत इस साल की संगीतमाला में नहीं भी हैं।
सरल होना आसान नही. और ये समझ पाना और भी मुश्किल. बधाई इस गाने के चुनाव के लिए!
सुमित अगर आपको मनोज मुंतशिर का लिखा पसंद आता है तो बता दूँ कि हाल ही में उनकी कविता की किताब मेरी फितरत है मस्ताना आयी है वाणी प्रकाशन से।
पहले आतिफ़ असलम भी एकरसता के शिकार लगते थे, पर पिछले साल दिल दिया गल्लां.. और इस गीत में बड़े कर्णप्रिय लगते हैं।
Manish दिल दीयाँ गल्ला तो ख़ैर बेहद मधुर था ही। पिछले साल करीब करीब सिंगल के गीत जाने दे में भी एक अलग अंदाज में नज़र आए थे।
हाँ सर, वो गीत भी बहुत खूबसूरत था।
एक उम्दा गाने के साथ साथ उसके पीछे की इतनी सारी जानकारी बहुत रोचक लगी।
लेकिन मेरे हिसाब से सर, इस गाने को थोड़ा और ऊपर जगह मिलनी चाहिए थी।
अपनी राय ज़ाहिर करने का शुक्रिया। दरअसल ये पच्चीसों गाने मेरे प्रिय हैं। जहाँ तक इस गीत का सवाल है अगर ये बिना किसी उधारीके अपने मूल स्वरूप में होता तो मेरीसूची में और आगे जा सकता था।
यह गीत वह गीत है जिसे बहुत प्रिय होने के बावज़ूद प्रिय नहीं कह पायी। कारण वही जो आपने पोस्ट में लिखा। एक स्थापित गीत जिसे मैं जमाने से पसंद ही नहीं बहुत पसंद करती हूँ उस पर कोई अपनी कंपनी का लेवल लगा कर नई पैकिंग कर दे तो मुझे बहुत बुरा लग जाता है।
लेकिन हाँ इस गीत में एक बात प्रशंसनीय है जो यहाँ कहानी ज़रूरी है कि अपने बोलों के कारण प्रिय यह गीत दोबारा उसी स्तर पर नई पीढ़ी में भी प्रिय हुआ तो कारण दोबारा भी उतने ही दमदार बोल ही हैं। इसके लिए मनोज जी की प्रशंसा होनी ही चाहिए।
अक्षरशः सहमत कंचन।
बहुत सुंदर।
धन्यवाद लीना जी।
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