बुधवार, जनवरी 23, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 7 : नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ Hafiz Hafiz

जैसा कि मैंने आपसे पहले भी कहा था कि संगीतमाला के शुरुआती दर्जन भर गीतों में एक तिहाई गीत ऐसे हैं जो टीवी या रेडियो पर पिछले साल बेहद कम बजे पर मेरे दिल के बेहद करीब रहे। तू ही अहम को तो आपने ग्यारहवीं पायदान पर सुना ही। आज की पायदान पर जो गीत बज रहा है वो भी एक ऐसा ही गीत है जिसे आपने पहले शायद ही सुना हो। फिल्म लैला मजनूँ के इस गीत को आवाज़ दी है मोहित चौहान ने और धुन बनाई है नीलाद्रि कुमार ने। मैं अक्सर गीतों को पहले देखता नहीं सिर्फ सुनता हूँ, पर जैसे जैसे मैंने लैला मजनूँ में नीलाद्रि कुमार के रचे गीतों को सुनना शुरु किया तो पहले इसके गीतों और उसके बाद इस फिल्म को देखने की इच्छा बढ़ती चली गयी। 


आशिकी, तड़प और पागलपन का जो सम्मिलित  चित्र उन्होंने संगीत से एक पेंटिंग सरीखा इस गीत  में उकेरा है, उसका असर शब्दों में व्यक्त कर मैं कम नहीं करना चाहता। जो बात मैंने हाफिज़ हाफिज़ के संगीत में महसूस की वही भावना जब उनके साक्षात्कार में दिखी तो मुझे लगा कि उनकी बात कम से कम मुझ तक पहुँची है।

"हाफिज़ हाफिज़ का संगीत रचना मेरे लिए सबसे कठिन था। फिल्म में गीत से जुड़े निर्देश बार बार बदलते रहे। मुझे इस गीत में कहानी के उस मोड़ की बात करनी थी जब मजनूँ की शख्सियत आशिक से एक पागल में बदल जाती है। ये गीत कहानी को आगे बढ़ाता है। मेरा ऐसा मानना है कि फिल्म के गीत एक धागे के समान हैं जो उसके सिरों को जोड़े रखते हैं। संगीत संयोजन में एक निरंतरता जरूरी है। अगर आप फिल्म ना भी देख रहे हों तो आपको आभास हो जाना चाहिए कि वहाँ क्या चल रहा होगा। संगीत के मायने होने चाहिए। मेरे लिए इसे रचना एक कहानी कहने जैसा है।"
नीलाद्रि कुमार
नीलाद्रि के इस गीत की शुरुआत की सवा मिनट की धुन को दर्जनों बार सुनते हुए मैंने अपनी आँखें गीली की हैं। क्यूँ की हैं मुझे ख़ुद भी पता नहीं! अजीब सी कशिश है उनके जिटार या इलेक्ट्रिक सितार आधारित इस धुन में जिसे सुन मन उदासियों के रंग में रँग जाता है । बाद में जब  वीडियो देखा तो पाया कि गीत का प्रील्यूड वहाँ से शुरु होता है जब फिल्म में मजनूँ को पहला पत्थर लगता है। 

गीत में कश्मीरी दर्शन का पुट भरने के लिए शुरुआत में वहाँ के एक लोकप्रिय गीत की पंक्तियाँ ली गयी हैं 

हुकुस बुकुस तेली वान चेकुस
मोह बतुक लोगम डेग
श्वास खिच खिच वांगमय
भरुामन दारस पोयुन चुक
तेकिस तक्या बाने त्युक

जिनका अर्थ है मैं कौन हूँ, तुम कौन हो और कौन है ये हमें बनानेवाला जो हम दोनों में व्याप्त है? अभी तो मेरा शरीर भौतिक सुखों और मोह माया की खुराक़ से लिप्त है। जिस दिन मैं आंतरिक शुद्धि की उस अवस्था में पहुँचूँगा उस दिन मेरी हर साँस पवित्र होगी, मेरा मन दिव्य प्रेम के सागर में डुबकियाँ लगाएगा और चंदन की सुगंध की तरह मेरा अस्तित्व पूरी सृष्टि में फैल जाएगा।

मोहित चौहान
इरशाद कामिल के लिखे अगले दो अंतरे समाज से लताड़े दुत्कारे मजनूँ के हालात और मानसिक अवस्था का मार्मिक चित्रण करते हैं। दर्द जब एक हद से गुजर जाए तो फिर वो इंसान को कुछ और ही बना देता है इसलिए कामिल लिखते हैं हर दर्द मिटा हर फर्क मिटा मैं और हुआ । जिटारकी सम्मोहक धुन इस गीत के पहले मिनट के आस पास बजती है और फिर साढ़े चार मिनट बाद उसकी वही धुन फिर उभरती है जब मजनूँ का पागलपन अपने चरम पर होता है।

मोहित चौहान भले ही आजकल कम सुनाई देते हों पर इम्तियाज अली की फिल्मों से वो जब वी मेट के ज़माने से ही जुड़े हुए हैं। इस गीत में इश्क़ के जुनून उसके पागलपन को उन्होंने अपनी आवाज़ में उभारने की पुरज़ोर कोशिश की है। मेरी गुजारिश है कि आप इस गीत को पहले सुनें और फिर देखें तभी आप नीलाद्रि कुमार की कही इस बात का मर्म समझ सकते हैं...

"मैं अपनी रचनाओं में किसी खास तरह की आवाज़ पैदा करने का प्रयत्न नहीं करता। मेरे लिए संगीत ऐसा होना चाहिए जो एक दृश्य आँखों के सामने ला दे, बिना कहानी सामने हुए भी उसके अंदर की भावना जाग्रत कर दे। चूँकि मैं एक वादक हूँ मेरे पास बोलों की सहूलियत नहीं होती अपना संदेश श्रोताओं तक पहुँचाने के लिए। शब्दों का ना होना हमारे काम को कठिन बनाता है पर कभी कभी उनकी उपस्थिति एक मनोभाव को धुन के ज़रिए प्रकट करने में मुश्किलें पैदा करती है। ऐसी ही परिस्थितियों में इरशाद कामिल जैसे गीतकार मदद करते हैं।" 

कोई फिक्र नहीं है, कोई गर्ज़ नहीं
बस इश्क़ हुआ है, कोई मर्ज़ नहीं
मुझे फिकर नहीं है, मुझे अकल नहीं
मैं असल में तू हूँ, तेरी नक़ल नहीं
कोई फिक्र नहीं...

जग में जग सा होकर रह तू
(जग में जग सा होकर रह तू)
सुनता रह बस कुछ ना कह तू
(सुनता रह बस कुछ ना कह तू)
बातें पत्थर ताने तोहमत
(बातें पत्थर ताने तोहमत)
हो हमसा होकर हँस के सह तू
(हमसा होकर हँस के सह तू)

शोर उठा घनघोर उठा फिर गौर हुआ
हर दर्द मिटा हर फर्क मिटा मैं और हुआ
कोई बात नई करामात नई कायनात नई
इक आग लगी कुछ खाक हुआ कुछ पाक हुआ

बदल गया भला क्यों जहां तेरा
यहाँ वहाँ घनघोर से घिरा
खतम हुआ अकल का सफर तेरा
सँभल ज़रा सुनसान राज़ का
ज़हर भरा आदमी भटक रहा
भाग कहाँ निकलेगा ये बता
कोई फिक्र नहीं है...


प्यार के पवित्र एहसास में डूबे एक इंसान को एक पागल और वहशी क़रार देना वैसा ही है जैसा क़ुरान याद रखने वाले हाफिज़ को काफिर की पहचान  दे देना। इसी लिए इरशाद कामिल गीत का अंत कुछ यूँ करते हैं..

हाफिज़ हाफिज़ हो गया हाफिज़...
काफ़िर काफ़िर बन गया काफ़िर...

ये गीत मेरे ज़हन में धीरे धीरे चढ़ा और इतना चढ़ा कि प्रथम दस में अपनी जगह बना गया। धीरे धीरे ही सही शायद आप पर भी असर करे..




वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां
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19 टिप्पणियाँ:

Rajesh Goyal on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

No comment as my comment might hurt your feelings, hence no comment.

Manish Kumar on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

आपसे यही उम्मीद थी। ना लिखते हुए भी राय देने के लिए धन्यवाद। :)

Dr Sagar on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

हाफिज़ हाफिज़, बेहतरीन गाना

Manish Kumar on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

Dr Sagar आपको भी पसंद है जानकर अच्छा लगा।

Dr Sagar on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

इरशाद कामिल के तो सभी दीवाने हैं । इस गाने की धुन अच्छी बन पड़ी है ।

Manish Kumar on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

Dr Sagar इस गीत का सबसे मजबूत पक्ष संगीत ही है जो गीत की भावनाओं को अपने कंधे पर ढोकर चलता है।

Dr Sagar on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

Manish Kumar आपसे पूरी तरह से सहमत 😊😊

Manish on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

ये गीत पहली बार सुने हैं। शुरुआत की जिटार की धुन रोमांचित करती है। सर, मोहित चौहान की की गायकी का असर धीरे-धीरे ही होता है, बिल्कुल होमियोपैथिक दवा की तरह!!

Manish Kumar on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

Manish मुझ पर भी इस गीत ने धीरे धीरे ही जड़ें जमाई। ये आम मधुर गीतों जैसा है भी नहीं। दृश्यों की नाटकीयता के साथ संगीत और गायिकी का उतार चढ़ाव देखते/सुनते ही बनता है।

Rajesh Goyal on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

"आपसे यही उम्मीद थी" कृपया इसका आशय स्पष्ट करें।

Anju Rawat on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

ये बेमिसाल गीत सुनाने के लिए बेहद शुक्रिया Manish जी, आपके कहे अनुसार गाना 2-3 बार सुना, वकाई कमाल का संगीत है, लिरिक्स भी लाजवाब है। लैला मजनूँ के इश्क़ का जुनून, पागलपन, तड़प सब गीत में बखूबी महसूस हो रहे। एक तो गाना सुनके ही दिल तड़प गया था, फिर वीडियो में मजनूँ का पागलपन की हद से गुजरना देख के तो आँखें ही भर आईं।

इस फ़िल्म के बेहतरीन गीत-संगीत के अलावा फिल्म में हीरो का चयन भी बहुत दिलचस्प लग रहा है, ये लड़का सच मे इश्क़ में सब हदों से गुज़र कर दीन दुनिया से परे वहशी हो गया ही लग रहा है, अब दर्द-तकलीफ़-लोगों की बातें-उपेक्षा-उपहास सब से ऊपर उठ गया है।


गालिब चचा भी जैसे फरमा गए हैं...
"इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना..."

Manish Kumar on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

बेहतरीन शब्दों में समेटा है आपने इस गीत को सुनने के बाद के अनुभव को। अविनाश तिवारी और तृप्ति डिमरी हैं इस फिल्म के नायक नायिका। फिल्म तो मैंने अब तक नहीं देखी पर आपने बिल्कुल सही कहा अविनाश ने इस गीत में जिस अभिनय की झलक दिखाई है वो इस बात की ओर इशारा करती है कि वे अपने फ़न में माहिर हैं।

Sumit on जनवरी 26, 2019 ने कहा…

इस गाने की खासियत इरशाद कामिल के बोल ही हैं. ये एल्बम ऑफ़ द ईयर है.

Manish Kumar on जनवरी 27, 2019 ने कहा…

सुमित मैं तो नीलाद्रि कुमार का जबरदस्त प्रशंसक बन गया हूँ उनके द्वारा संगीतबद्ध किए गए गीतों को सुनकर। जब जब उनका जिटार बजता है मन के तार बजने लगते हैं। इरशाद कामिल का भी काम हमेशा केी तरह बेहतरीन है इस फिल्म में।

Swati Gupta on जनवरी 31, 2019 ने कहा…

मनीष जी अगर मैंने आपकी ये पोस्ट नहीं पढ़ी होती तो शायद में ये गाना कभी ना सुनती और एक बेहतरीन गाना सुनने से रह जाता। इसे सुनने के बाद लग रहा है कि फिल्म भी देखनी चाहिए :)

Manish Kumar on जनवरी 31, 2019 ने कहा…

बिल्कुल लैला मजनूँ के गानों को देखने के बाद फिल्म देखने का मन होने लगता है। फिल्म का गीत संगीत पक्ष जितना मजबूत था शायद उस हिसाब से पटकथा उतनी कसी नहीं थी। इसलिए फिल्म इतनी नहीं चली।

Swati Gupta on जनवरी 31, 2019 ने कहा…

मै आपसे कहने ही वाली थी की अगर आपने ये फिल्म देख ली है तो इसके बारे में भी अपनी राय दीजिएगा। पर फिर भी इस गाने के लिए ही सही मै इस फिल्म को एक बार जरूर देखना चाहूंगी। कुछ गाने ऐसे होते है जो दिल में जगह बना लेते है...ये कुछ ऐसा ही गाना है..धीरे धीरे असर हो रहा है इसका।

Manish Kumar on जनवरी 31, 2019 ने कहा…

Swati एकदम मन की बात कह रही हैं आप। मेरी सूची में यही गाना था जिसे जितनी बार सुना उसका असर और गहराता गया।

Dr Sagar on फ़रवरी 03, 2019 ने कहा…

मैं आज भी कई बार सुन गया । हाफिज़ हाफिज़ । क्या धुन क्या लिरिक्स

 

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