पूरे एक महीने की संगीत यात्रा की अलग अलग सीढ़ियों को चढ़ते हुए वक़्त आ गया है एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला की चोटी पर स्थित पायदान यानी साल के सरताज गीत के खुलासे का। सच तो ये है कि इस साल के प्रथम दस गीत सभी एक से बढ़कर एक थे। सब का एक अपना अलग रंग था। कहीं पारिवारिक विछोह था, कहीं किसी के आने की अंतहीन प्रतीक्षा थी, कहीं आर्केस्ट्रा का जादू था, कहीं देशभक्ति की पुकार थी, कहीं शास्त्रीयता की बहार थी, कहीं एक अजीब सा पागलपन था तो कहीं प्रेम से रससिक्त सुरीली तान थी।
मैंने इस साल के सरताज गीत के लिए जो रंग चुना है वो है प्रेम में अनिश्चितता का, बेचैनी का, दूरियों का, और इन तकलीफों के बीच भी आपसी अनुराग का। ये रंग समाया है लैला मजनूँ के गीत आहिस्ता में। इस गीत की धुन बनाई नीलाद्रि कुमार ने, लिखा इरशाद कामिल ने और गाया अरिजीत सिंह और जोनिता गाँधी की जोड़ी ने।
फिल्म लैला मजनूँ के लिए नीलाद्रि ने चार गीतों को संगीतबद्ध किया। पिछले साल के इस सबसे शानदार एलबम के कुछ गीतों तुम, ओ मेरी लैला ,सरफिरी और हाफिज़ हाफिज़ से आप मिल ही चुके हैं। इससे पहले कि आपको इस गीत से मिलवाऊँ क्या आप ये नहीं जानना चाहेंगे कि इम्तियाज़ अली ने सितार/ जिटार वादक नीलाद्रि को इस संगीतमय फिल्म की आधी जिम्मेदारी भी क्यूँ सौंपी? इससे पहले नीलाद्रि ने सिर्फ एक बार हिंदी फिल्मों के एक गीत में संगीत दिया था। दरअसल इम्तियाज़ अली के एक मित्र जो अक्सर अपने नाटकों में उन्हें बुलाया करते थे ने उनको नीलाद्रि के बारे में बताया था। नीलाद्रि के व्यक्तित्व को परिभाषित करने का उनका अंदाज़ निराला था
"एक म्यूजिकल उस्ताद है जो यंग है और क्रिकेट भी खेलता है और अपने जैसा कूल है तू मिल उससे"।
इम्तियाज़ उनसे मिले तो उन्होंने नीलाद्रि को वैसा ही पाया सिवाय इस बात के कि वो सिर्फ क्रिकेट नहीं बल्कि फुटबाल भी खेलते हैं। तब तक लैला मजनूँ के कुछ गीतों की कमान दूसरे संगीतकारों को मिल चुकी थी। नीलाद्रि एक फिल्म में एक संगीतकार वाली शैली के हिमायती हैं पर कश्मीर घाटी में पनपती एक प्रेम कहानी में संगीत देना उन्हें एक आकर्षक चुनौती की तरह लगा जिसमें वो अपने संगीत के विविध रंग भर सकते थे।
नीलाद्रि ने लैला मजनूँ के संगीत में गीतों की सामान्य शैली से हटकर संगीत दिया और उनके अनुसार ये सब स्वाभाविक रूप से होता चला गया। उनकी कही बात एक बार फिर आपसे बाँटना चाहूँगा..
"मैं अपनी रचनाओं में किसी खास तरह की आवाज़ पैदा करने का प्रयत्न नहीं करता। मेरे लिए संगीत ऐसा होना चाहिए जो एक दृश्य आँखों के सामने ला दे, बिना कहानी सामने हुए भी उसके अंदर की भावना जाग्रत कर दे। चूँकि मैं एक वादक हूँ मेरे पास बोलों की सहूलियत नहीं होती अपना संदेश श्रोताओं तक पहुँचाने के लिए। शब्दों का ना होना हमारे काम को कठिन बनाता है पर कभी कभी उनकी उपस्थिति एक मनोभाव को धुन के ज़रिए प्रकट करने में मुश्किलें पैदा करती है। ऐसी ही परिस्थितियों में इरशाद कामिल जैसे गीतकार मदद करते हैं।
मैंने अपने कैरियर में कई धुनें बनाई है अपने गीतों और वाद्य वादन के लिए। अगर मुझसे 10-15 साल बाद कहा जाए कि उन्हें फिर से बनाओ तो मैं उनमें बदलाव लाऊँगा पर आहिस्ता के लिए मैं ऐसा नहीं कह सकता।"
नीलाद्रि कुमार और इरशाद कामिल |
आहिस्ता एक ऐसा गीत है जो प्रेम की विभिन्न अवस्थाओं की बात करता है। पहला दौर वो जिस में प्रेम पनप रहा होता है। नायिका आहिस्ता आहिस्ता अपने प्रेमी को दिल में जगह देना चाहती है। वहीं नायक के मन में अपने दिल की बात को उस तक पहुँचाने की उत्कंठा है। फिर उसकी बात के मर्म को ठीक ठीक ना समझे जाने का भय भी है। सबसे बड़ा संकट है पूर्ण अस्वीकृति की हर समय लटकती तलवार का। अब ऐसे में नायक का दिल परेशां ना हो तो क्या हो और इसीलिए कामिल साहब लिखते हैं कि पूछे दिल तो, कहूँ मै क्या भला...दिल सवालों से ही ना, दे रुला।
तुम मिलो रोज ही
मगर है ये बात भी
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता
तुम, मेरे हो रहे
या हो गये, या है फासला
पूछे दिल तो, कहूँ मै क्या भला
दिल सवालों से ही ना, दे रुला
होता क्या है, आहिस्ता आहिस्ता
होना क्या है, आहिस्ता आहिस्ता
चलिए प्रेम हो भी गया पर सामाजिक हालातों ने आपको अपने प्रेमी से दूर कर दिया।अब सहिए वेदना। लोग तो शायद दिलासा देंगे कि वक़्त के साथ सब ठीक हो जाएगा पर नायक नायिका जानते हैं कि ये दुनिया कितनी झूठी हैं और ये वक़्त किस तरह प्रेमियों को छलता रहा है। इरशाद कामिल इन भावों को कुछ यूँ शब्द देते हैं
दूरी, ये कम ही ना हो
मै नींदों में भी चल रहा
होता, है कल बेवफा
ये आता नहीं, छल रहा
लाख वादे जहां के झूठे हैं
लोग आधे जहां के झूठे हैं
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता
फिर भी देखिए ना इतनी तकलीफ के बाद भी मन में अपने प्रेमी के लिए जो अनुराग हैं ना वो खत्म नहीं होता और इस बात को इरशाद कामिल इतनी खूबसूरती से कहते हैं कि
मैंने बात, ये तुमसे कहनी है
तेरा प्यार, खुशी की टहनी है
मैं शाम सहर अब हँसता हूँ
मैंने याद तुम्हारी पहनी है
तेरा प्यार, खुशी की टहनी है
मैं शाम सहर अब हँसता हूँ
मैंने याद तुम्हारी पहनी है
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता
होता क्या है आहिस्ता आहिस्ता
होता क्या है आहिस्ता आहिस्ता
खुशी की टहनी और यादों को पहनने का भाव मन को रोमांचित कर जाता है। आप गीत में खो चुके होते हैं कि नीलाद्रि जिटार पर अपनी मधुरता बिखेरते सुनाई पड़ते हैं।
अरिजीत और जोनिता |
अरिजीत और जोनिता इस गीत में जगह पाकर बहुत खुश थे और दोनों ने ही बखूबी इस गीत को अपनी आवाजें दी हैं।। अरिजीत ने तो ये भी कहा कि गीत के बोलों से वो एक ही बार में जुड़ गए। अरिजीत का हिस्सा थोड़ा कठिन था पर जिस कोटि के वे गायक हैं उन्होंने उसे भी पूरे भाव के साथ निभाया।
वो कहते हैं ना कि किसी गाने में एक मीठा सा दर्द है तो ये वैसा ही गाना है़ और ऐसे गीत मुझे हमेशा से मुतासिर करते रहे हैं। आज जब रीमिक्स और रैप के ज़माने में भी नीलाद्रि और इम्तियाज अली जैसे लोग संगीत की आत्मा को अपनी फिल्मों में इस तरह सँजों के रखते हैं तो बेहद खुशी होती है और दिल में आशा बँधती है हिंदी फिल्म संगीत के सुनहरे भविष्य की। तो आइए आहिस्ता आहिस्ता महसूस कीजिए इस गीत की मधुर पीड़ा को..
इस साल की संगीतमाला का अगला और अंतिम आलेख होगा एक शाम मेरे नाम के पिछले साल के संगीत सितारों के नाम जिसमें बात होगी कलाकारों के सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिगत प्रदर्शन की :)
वार्षिक संगीतमाला 2018
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता
2. जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3. ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4. आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5. मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
6. तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7. नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़
8. एक दिल है, एक जान है
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा
21. जिया में मोरे पिया समाए
16 टिप्पणियाँ:
तुम, मेरे हो रहे
या हो गये, या है फासला
पूछे दिल तो, कहूँ मै क्या भला
दिल सवालों से ही ना, दे रुला
होता क्या है, आहिस्ता आहिस्ता
होना क्या है, आहिस्ता आहिस्ता
वाह! बेहद उम्दा गीत चुना आपने Manish Kumar ji अपनी सूची में प्रथम स्थान पर। अगले वर्ष भी आपके गीतों की सूची की प्रतीक्षा रहेगी 👍😁😁🌻🌹🥀🌺
I guessed it! LailaMajnu ka hi hoga zaroor aur album khangalne ke baad iss gaane par aa tiki thi.
पहली बार सुना हूँ। सरताज गीत के लिरिक्स खास पसन्द आये। सर जो अगला आलेख आनेवाला है, उस बारे में मैं भी पूछने वाला ही था की इस वर्ष के सर्वश्रेष्ठ गायक, गायिका, गीतकार, संगीतकार और एलबम कौन रहे!!
सर्वश्रेष्ठ! आपके संगीतमाला की तरह! लेक़िन इस बार सर्वश्रेठ गीत को मैंने गेस कर लिया था :).
इस गीत के बोल, धुन, संगीत और गायन सभी कुछ बहुत अच्छे लगे...नीलाद्रि कुमार का काम काबिले तारीफ है। पर फिर भी मैं पहले पायदान पर हाफ़िज़ हाफ़िज़ गाने की रखती :)
ये गीत और संपूर्ण रूप से यह गाना मेरा भी इस साल का सबसे पसंदीदा गाना है। इरशाद कामिल गज़ब के शायर हैं आज के दौर के सबसे बेहतरीन लिरिसिस्ट हैं। रॉकस्टार के गीत "और हो" में जो कशिश है वही यहां भी दिखाई देती है, खासकर उसकी पंक्तियां "मैंं दस्तक हूँ तू बंद किवाड़ों सा खुल जा रे.."। इस गीत में भी "दूरी ये कम ही न हो, मैं नींदों में भी चल रहा...",यह पंक्ति सबसे बेहतरीन है। अरिजीत सिंह की आवाज़ में जो खलिश है और जिस ease के साथ वो गाना गाते हैं, हजार बार सुनने पर भी सीधे दिल को छूता है। ऐसे गीतों को शेयर करने के लिए, बहुत-बहुत शुक्रिया मनीष जी!
धन्यवाद प्रतिमा... इस गीतमाला में साथ बने रहने के लिए ! :)
Smita, I tried to gave the clue in between that there are 4 songs of the movie in my list. You picked up that clue and guessed it right :)
Manish Kumar hahaha..yes..
Manish हाँ अब उसी की तैयारी है। जल्द आ रहा है एक शाम मेरे नाम के संगीत सितारे... :)
Sumit हाफिज़ हाफिज़ के बारे में लिखते वक़्त ही मैंने इशारा कर दिया था कि इसका एक गाना और है संगीतमाला में और ये साल का मेरे लिए सबसे बेहतरीन एलबम है। आपने इस संकेत पर ही अनुमान लगाया होगा। इससे ये पता चलता है कि आप मेरा लिखा ध्यान से पढ़ते हैं। :)
Swati जैसा मैंने आलेख के शुरु में ही कहा है कि शुरुआत के दसों गीत एक से एक हैं। अच्छा होने के बाद अगर कोई गीत भावनात्मक जुड़ाव बना ले तो वो ज्यादा ही अच्छा लगने लगता है और स्वाभाविक है कि सबके लिए ये बात अलग अलग गीतों के लिए हो सकती है।
मुझे बहुत खुशी है कि हाफिज़ हाफिज़ आपको इतना पसंद आया। आपने पढ़ा होगा कि मैंने कितने विस्तार से उसके बारे में लिखा। जिन लोगों को वो गीत या ये पहला गीत पसंद आया है, ये कह सकता हूँ कि उनकी गीत संगीत के प्रति सोच मेरे से मिलती जुलती है। :)
अब देखिए कि हाफिज़ हाफिज़ को लेकर कुछ लोग नाराज़ हो गए कि इसे कैसे चुना? कुछ ने कहा ये थोड़ा और नीचे रहता। इसलिए मैं कहता हूँ कि रैकिंग एक व्यक्तिगत मसला है। आपको गाना पसंद आया वो ज्यादा महत्त्वपूर्ण है बजाए इस बात के कि वो किस नंबर पर बजा।
आपके विचारों को जानकर अच्छा लगा कपिल !
सही बात, गाना किस नंबर पर है ये महत्वपूर्ण नहीं है। आपने गानों के हर पहलू पर गौर करके उनका चुनाव किया.... पर हमने अपनी भावनात्मक प्रतिक्रिया दी। मै आपके चुनाव से पूरी तरह सहमत हूं। साथ ही मुझे खुशी है कि मेरी पसंद आपकी पसंद से मिलती है।
वाह, बेहद खूबसूरत गीत है। लैला मजनूँ के गाने दिलो-दिमाग पे छा से गए हैं। इस फ़िल्म के गीत-संगीत की ये भी ख़ासियत है कि ये फ़िल्म देखने का भी जबरदस्त आकर्षण पैदा करता है। तो फ़िल्म के गीत-संगीत, इम्तियाज़ अली, अविनाश, कश्मीर की ख़ूबसूरत वादियों और लैला मजनूँ की अमर दास्तान ने फ़िल्म देखने को मजबूर कर ही दिया। फ़िल्म पठकथा के स्तर पर कमज़ोर है लेकिन फ़िल्म के संगीत, पार्श्वसंगीत, अविनाश और तृप्ति के बेहतरीन अभिनय और कश्मीर की खूबसूरती ने दिल पर चोट कर ही दी।
वैसे इस गीत का दूसरा संस्करण "तुम नज़र में रहो" मुझे ज़्यादा अच्छा लगा, हो सकता है ज़्यादा बार सुनने पर "आहिस्ता" ही बेहतर लगे। निःसंदेह संगीत की गीतमाला के पहले पायदान पर लैला मजनूँ का ही हक़ है। आपके चुनाव की दाद देनी पड़ेगी मनीष जी... ����
Anju Rawat जी बिल्कुल। फिल्म अभी तक देखी तो नहीं पर मैंने भी यही पढ़ा है कि फिल्म की पटकथा का लचर होना इसके सफल ना होने की मुख्य वज़ह थी। फिल्म का कहानी से गुथा गीत संगीत हमेशा याद रखा जाएगा। इस फिल्म के गीतों पर आपके विचारों से साम्यता रही। संगीत के इस सफ़र में साथ बने रहने के लिए शुक्रिया।
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