अक्सर हम अपने मूड के हिसाब से गीतों को सुनते हैं पर कई दफ़ा ऐसा होता है कि चाहे हम किसी भी मूड में हों कोई गीत अचानक बज कर हमें अपने रंग में रंग लेता है। मेरे साथ पिछले हफ्ते ऐसा ही हुआ। कार्यालय जाने की तैयारी करते वक़्त सारेगामा कारवाँ से घुँघरू की तरह....ये गीत गूँजा और फिर दिन भर मेरे साथ ही रह गया। कॉलेज के ज़माने में किशोर दा के गीतों को हम थोक में सुनते थे। फिल्म चोर मचाए शोर का ये गीत भी उस दौर में मुझे काफी पसंद था। आजकल जब किशोर दा को सुनना पहले से काफी कम हो गया है तो अचानक इन गीतों को सुनकर वो पुराना वक़्त सामने आ जाता है।
1974 में रिलीज़ हुई इस फिल्म के संगीतकार थे रवींद्र जैन साहब। यूँ तो इस फिल्म के तीन गीत बहुत चले थे पर उनमें से एक की तकदीर इतनी अच्छी रही कि वो साल दर साल शादी विवाह के मौसम में बारहा बजता रहा। जी हाँ वही ले जाएँगे ले जाएँगे दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे.. रह जाएँगे रह जाएँगे पैसे वाले देखते रह जाएँगे। जानते हैं इस कालजयी गीत को किसने लिखा था? इसे लिखने वाले थे पंजाब के प्रसिद्ध कवि इंद्रजीत सिंह तुलसी जिन्हें अपने पंजाबी, उर्दू और हिंदी में रचे काव्य के लिए पंजाब के राजकवि से लेकर पद्मश्री सम्मान तक मिला। इस फिल्म के गीत एक डाल पर तोता बोले एक डाल पर मैना भी तुलसी जी की ही रचना थी।
रवींद्र जैन ने अपनी किताब सुनहरे पल में ले जाएँगे ले जाएँगे का जिक्र करते हुए लिखा है
रवींद्र जैन ने अपनी किताब सुनहरे पल में ले जाएँगे ले जाएँगे का जिक्र करते हुए लिखा है
"चोर मचाए शोर के एक गीत के लिए मैंने ढेर सारी धुनें बनाई। कोई सिप्पी साहब को पसंद नहीं आती तो कोई अशोक राय जी को नहीं जँचती। तंग आकर मैंने सोचा की इस फ़िल्म से नाता तोड़ लिया जाए। सिटिंग से उठते उठते एक धुन यूँ ही हारमोनियम पर बजाई। सारे सुनने वाले एक सुर में, एक मत होकर कहने लगे - इसी धुन की तो तलाश थी। स्वरों को शब्दों का जमा पहनाया गया, तब प्रकट हुवा ' ले जाएँगे, ले जाएँगे दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे। जिस गाने के बिना आज भी कोई बारात नहीं निकलती।"
फिल्म के बाकी गीत ख़ुद संगीतकार रवींद्र जैन ने लिखे थे। मुझे नहीं लगता कि हिंदी फिल्म संगीत में रवींद्र जैन के आलावा कोई और संगीतकार हुआ हो जिसने बतौर गीतकार भी अपनी अमिट छाप छोड़ी हो। घुँघरू की तरह, बजता ही रहा हूँ मैं सुनकर ऐसा लगता है मानो उनके जीवन में सहे गए कष्टों की प्रतिध्वनि मिल गयी हो।
अलीगढ़ के एक पढ़े लिखे परिवार से ताल्लुक रखने वाले रवींद्र जैन बचपन से ही दृष्टिहीन थे। बड़े भाई स्कूल में प्राध्यापक थे। रवींद्र तो किताबें पढ़ नहीं पाते थे। ऐसी स्थिति में उनके भाई साहित्यकारों की रचनायें उन्हें पढ़ कर सुनाते थे। साहित्य से इस तरह पनपा उनका अनुराग गीतों के माध्यम से उनकी लेखनी में उतर आया। फिल्मी दुनिया से दूर रहकर भी उन्होंने लेखनी का दामन नहीं छोड़ा। 'दिल की नज़र से' नाम से उनका ग़ज़ल संग्रह छपा। अपनी आत्मकथा 'सुनहरे पल' के आलावा उन्होंने भक्ति लेखन में अपने झंडे गाड़े। ना केवल उन्होंने गीता का सरल हिंदी में अनुवाद किया बल्कि रवींद्र रामायण नाम से एक पुस्तक भी लिख डाली।
ये गीत राग झिंझोटी पर आधारित है। राग झिंझोटी रात्रि के दूसरे पहर में गाया जाने वाला राग है। किशोर के कई उदास करने वाले लोकप्रिय गीत कोई हमदम ना रहा, कोरा कागज था ये मन मेरा, तेरी दुनिया से हो कर मजबूर चला राग झिंझोटी की स्वरलहरियों के ताने बाने में बुने गए हैं।
बाँसुरी के मधुर स्वर से गीत का प्रील्यूड शुरु होता है। इंटरल्यूड्स में भी वही मधुरता कायम रहती है। जिसने जीवन में दर दर ठोकरें खाई हों, भाग्य के खिलाफ लड़ा हो वो इस सहज पर दिल से लिखे गीत से जरूर मुत्तासिर होगा। इस गीत में रवी्द्र जी ने घुँघरू जैसे रूपक का कितना प्यारा और भावनात्मक प्रयोग किया जिसे किशोर दा की आवाज़ एक अलग मुकाम पर ले गयी। फिल्म में इस गीत के पहले दो अंतरों का इस्तेमाल हुआ है जबकि मुझे तीसरा अंतरा इस गीत का सबसे भावनात्मक हिस्सा लगता है। तो आइए सुनते हैं इस गीत को..
घुँघरू की तरह, बजता ही रहा हूँ मैं
कभी इस पग में, कभी उस पग मैं
बँधता ही रहा हूँ मैं
घुँघरू की तरह, बजता ही रहा हूँ मैं
कभी टूट गया, कभी तोड़ा गया
सौ बार मुझे फिर जोड़ा गया
यूँ ही लुट लुट के और मिट मिट के
बनता ही रहा हूँ मैं
घुँघरू की तरह, बजता ही रहा हूँ मैं...
मैं करता रहा, औरों की कही
मेरी बात मेरे, मन ही में रही
कभी मंदिर में, कभी महफ़िल में
सजता ही रहा हूँ मैं
घुँघरू की तरह, बजता ही रहा हूँ मैं...
अपनों में रहे, या गैरों में
घुँघरू की जगह तो है पैरों में
फिर कैसा गिला, जग से जो मिला
सहता ही रहा हूँ मैं
घुँघरू की तरह, बजता ही रहा हूँ मैं
इस गीत को फिल्माया गया था शशि कपूर पर
एक शाम मेरे नाम पर रवींद्र जैन
8 टिप्पणियाँ:
बहुत ही प्यारा गीत। गीत के बोल और संगीत के साथ साथ शशि कपूर साहब की अदाकारी भी कमाल की थी
फिल्म तो बचपन में देखी थी इसलिए शशि कपूर का अभिनय तो याद नहीं पर इसके गाने हमेशा रेडियो पर बजते रहते थे।
ले जाएँगे की मस्ती..एक डाल पर तोता बोले की चुहल और घुँघरू की तरह का दुख बड़ी बखूबी बुना था अपने संगीत से रवींद्र जैन ने।
दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे.. फ़िल्म का नाम भी शायद इस फ़िल्म के गीत से लिया गया है। फ़िल्म के अंताक्षरी वाले दृश्य में दिलवाले दुल्हनिया.. गाया भी गया है। :)
Manish हाँ बिल्कुल ।
"घुंघरू की तरह बजता ही रहा" किशोर दा की दमदार आवाज प्रकृति का एक बेहतर उपहार है। किशोर दा विविध प्रकार के गीत गाने में निपुण थे। मैं किशोर दा का बहुत बड़ा फैन हूं। कभी तो वो "मंजिलें अपनी जगह हैं" जैसे दर्द भरे गाने गाते तो कभी "इना मीना डीका" जैसे हंसा हंसाकर लोटपोट कर देने वाले गीत गाते थे। 80 के दशक के "जिन्दगी" से Related उनके दो गाने - कभी पलकों पे आंसू हैं (फिल्म - हरजाई) & जीवन मिटाना है दीवानापन (फिल्म - अरमान) ये दो गाने किशोर दा के अत्यंत बेहतरीन गीत है।
सत्तर और अस्सी के दशक में तो किशोर के गानों का एक लंबा चौड़ा खजाना है जो श्रोताओं में खासा लोकप्रिय हुआ। किशोर के व्यक्तित्व के कुछ अनछुए पहलुओं को अगर जानना चाहें तो ये आलेख पढ़ें
मैने पूरा एक दिन दादा के साथ बिताया था और उन्होंने स्वयं ये किताब मुझे भेंट दी थी..
वाह बड़े सौभाग्य की बात है ये तो।
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