बरसात की फुहारें रुक रुक कर ही सही मेरे शहर को भिंगो रही हैं। पिछले कुछ दिनों से दिन चढ़ते ही गहरे काले बादल आसमान को घेर लेते हैं। गर्जन तर्जन भी खूब करते हैं। बरसते हैं तो लगता है कि कहर बरपा ही के छोड़ेंगे पर फिर अचानक ही उनका नामालूम कहाँ से कॉल आ जाता है और वे चुपके से खिसक लेते हैं। गनीमत ये है कि वो ठंडी हवाओं को छोड़ जाते हैं जिनके झोंको का सुखद स्पर्श मन को खुशनुमा कर देता है।
ऍसे ही खुशनुमा मौसम में टहलते हुए परसों 1970 की फिल्म अभिनेत्री का ये गीत कानों से टकराया और बारिश से तरंगित नायिका के चंचल मन की आपबीती का ये सुरीला किस्सा सुन मन आनंद से भर उठा। क्या गीत लिखा था मजरूह ने! भला बताइए तो क्या आप विश्वास करेंगे कि एक कम्युनिस्ट विचारधारा वाला शायर जो अपनी इंकलाबी रचनाओ की वज़ह से साल भर जेल की हवा खा चुका हो इतने रूमानी गीत भी लिख सकता है? पर ये भी तो सच है ना कि हर व्यक्ति की शख्सियत के कई पहलू होते हैं।
मजरूह के बोलों को संगीत से सजाया था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की जोड़ी ने। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल कभी भी मेरे पसंदीदा संगीतकार नहीं रहे। इसकी एक बड़ी वजह थी अस्सी और नब्बे के दशक में उनका संगीत जो औसत दर्जे का होने के बावजूद भी कम प्रतिस्पर्धा के चलते लोकप्रिय होता रहा था। फिल्म संगीत की गुणवत्ता में निरंतर ह्रास के उस दौर में उनके इलू इलू से लेकर चोली के पीछे तक सुन सुन के हमारी पीढ़ी बड़ी हुई थी। लक्ष्मी प्यारे के संगीत की मेरे मन में कुछ ऐसी छवि बन गयी थी कि मैंने उनके साठ व सत्तर के दशक में संगीतबद्ध गीतों पर कम ही ध्यान दिया। बाद में मुझे इन दशकों में उनके बनाए हुए कई नायाब गीत सुनने को मिले जो मेरे मन में उनकी छवि को कुछ हद तक बदल पाने में सफल रहे।
लक्ष्मीकांत बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे। जीवकोपार्जन के लिए उन्होंने संगीत सीखा। मेंडोलिन अच्छा बजा लेते थे। एक कार्यक्रम में उनकी स्थिति के बारे में लता जी को बताया गया। फिर लता जी के ही कहने पर उन्हें कुछ संगीतकारों के यहाँ काम मिलने लगा। इसी क्रम में उनकी मुलाकात प्यारेलाल से हुई जिन्हें वॉयलिन में महारत हासिल थी। कुछ दिनों तक दोनों ने साथ साथ कई जगह वादक का काम किया और फिर उनकी जोड़ी बन गयी जो उनकी पहली ही फिल्म पारसमणि में जो चमकी कि फिर चमकती ही चली गयी़। कहते हैं कि उस ज़माने में उनकी कड़की का ये हाल था कि उनके गीत कितने हिट हुए ये जानने के लिए वे गली के नुक्कड़ पर पान दुकानों पर बजते बिनाका गीत माला के गीतों पर कान लगा कर रखते थे।
लक्ष्मी प्यारे को अगर आरंभिक सफलता मिली तो उसमें उनकी मधुर धुनों के साथ लता जी की आवाज़ का भी जबरदस्त हाथ रहा। ऐसा शायद ही होता था कि लता उनकी फिल्मों में गाने के लिए कभी ना कर दें। फिल्म जगत को ये बात पता थी और ये उनका कैरियर ज़माने में सहायक रही।
ओ घटा साँवरी, थोड़ी-थोड़ी बावरी
हो गयी है बरसात क्याहर साँस है बहकी हुई
अबकी बरस है ये बात क्या
हर बात है बहकी हुई
अबकी बरस है ये बात क्या
ओ घटा साँवरी...
पा के अकेली मुझे, मेरा आँचल मेरे साथ उलझे
छू ले अचानक कोई, लट में ऐसे मेरा हाथ उलझे
क्यूँ रे बादल तूने.. ए ..ए.. ए.. आह उई ! तूने छुआ मेरा हाथ क्या
ओ घटा साँवरी...
आवाज़ थी कल यही, फिर भी ऐसे लहकती ना देखी
पग में थी पायल मगर, फिर भी ऐसे छनकती ना देखी
चंचल हो गये घुँघरू रू.. मे..रे.., घुँघरू मेरे रातों-रात क्या
ओ घटा साँवरी...
मस्ती से बोझल पवन, जैसे छाया कोई मन पे डोले
बरखा की हर बूँद पर, थरथरी सी मेरे तन पे डोले
पागल मौसम जारे जा जाजा जा.. जा तू लगा मेरे साथ क्या!
ओ घटा साँवरी...
तो लौटें आज के इस चुहल भरे सुरीले गीत पर। लक्ष्मी प्यारे ने इस गीत की धुन राग कलावती पर आधारित की थी। बारिश के आते ही नायिका का तन मन कैसे एक मीठी अगन से सराबोर हो जाता है मजरूह ने इसी भाव को इस गीत में बेहद प्यारे तरीके से विस्तार दिया है। लक्ष्मी प्यारे ने लता जी से हर अंतरे की आखिरी पंक्ति में शब्दों के दोहराव से जो प्रभाव उत्पन्न किया है वो लता जी की आवाज़ में और मादक हो उठा है। तो चलिए हाथ भर के फासले पर मँडराते बादल और मस्त पवन के झोंको के बीच सुनें लता जी की लहकती आवाज़ और छनकती पायल को ...
जितना प्यारा ये गीत है उतना ही बेसिरपैर का इसका फिल्मांकन है। हेमा मालिनी पर फिल्माए इस गीत की शुरुआत तो बारिश से होती है पर गीत खत्म होते होते ऐसा लगता है कि योग की कक्षा से लौटे हों। बहरहाल एक रोचक तथ्य ये भी है कि इस फिल्म के प्रीमियर पर धरम पा जी ने पहली बार अपनी चंगी कुड़ी हेमा को देखा था।
18 टिप्पणियाँ:
Very nice Manish
Thanks KSS .
बहुत सुंदर गीत 👏👏
सावन के झूले पड़े तुम चले आओ
ये गीत भी बरसात में याद आने वाला बहुत ही खूबसूरत गीत हैं
राखी मेरी प्रिय कलाकार हैं तो ये मुझे और भी पसंद है।❤️
निसंदेह बड़ा प्यारा गीत है वो भी प्रतिमा । कभी उस पर भी लिखने की कोशिश करूँगा।
Very nice write up.
Thanks Rama jee !
Kitni pyari baatein likh lete Hain Manish ji aap...woh beetein huye din yaad as jaatein Hain...dilli mein apna Ghar, angan mein gulmohar ka ped aur baarish ki phuhar...💞
वाह... आपकी प्रशंसा के शब्द पाकर गीत धन्य हो गया��
Disha Bhatnagar तुम्हें ये गीत अच्छा नहीं लगा ?
बहुत अच्छा लगा😊👌
सुंदर गीत..और आपका वर्णन भी
आज पटना में भी अच्छी बारिश हुई है। इस सुहाने मौसम में इतना प्यारा गीत। लक्ष्मी-प्यारे का संगीत भले ही सर्वश्रेष्ठ न हो, पर सबसे लोकप्रिय संगीतकारों में तो हैं ही।
Smita बस ऐसा ही मौसम हो रहा है हमारे शहर में। मेरे लिखे हुए को पढ़कर आपकी कुछ पुरानी यादें ताज़ा हुईं, जानकर अच्छा लगा। :)
Rashmi शुक्रिया 😊😊
Manish लोकप्रिय तो थे ही पर अस्सी और नब्बे के दशक में उनके संगीतबद्ध गीत मेरे पसंदीदा कभी नहीं रहे।
बढिया गीत है .. लक्ष्मी प्यारे बीच बीच में ऐसे ख़ुशनुमा म्युजीकल शाॅक्स देते रहते थे.पर मैं पंचम के संगीत के प्रति काफी बायस्ड हुं
Hamid हाँ, खासकर साठ और सत्तर के दशक में उन्होंने कुछ प्यारे नग्मे बनाए पर बाद का उनका संगीत मुझे उतना नहीं रुचा। यही वज़ह है कि एक दशक से ज्यादा लिखते हुए आज पहली बार है जब मैंने एक शाम मेरे नाम पर उनका का कोई गीत पेश किया है।
LP ki apaar pratibha ko pechankar hee Lata aur Rafi ne aage badhane mein madad ki. Ye LP ki Pratibha aur mehnat hee thi ki wo aakhir tak hashiye per nhi gaye.4 baar lagatar best musician Ka Filmfare award jeetna aur sarvadhik 25 baar nominated hona (ye record aaj bhi nahin toot paya hai)koi mazak nhi.Atyadhik safalta ke bavajud dono hamesha behad vinamra rahey.
Ho sakey to purvagrah chhodkar inkey music per nigah daliyega.Kai aur nageene milenge.
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