कई बार नए कलाकार कुछ ऐसी पुरानी ग़ज़लों की याद दिला देते हैं जिनसे सालों से राब्ता टूटा हुआ था। पिछले हफ्ते जनाब मेहदी हसन की गायी ऐसी ही एक नायाब ग़ज़ल सुनने को मिली। दरअसल गणेशोत्सव में हर साल संगीतकार व गायक शंकर महादेवन के यहाँ सुरों की महफिल जमती है। इस बार उस आयोजन में युवा गायिका हिमानी कपूर ने बड़े प्यार से हकीम नासिर की इस ग़ज़ल के कुछ शेर गुनगुनाए और सच में सुन के आनंद आ गया।
अब जब इस ग़ज़ल की बात हो रही है तो उसे रचने वाले हकीम नासिर साहब के बारे में भी कुछ जान लिया जाए। जनाब काबिल अजमेरी की तरह नासिर साहब की पैदाइश राजस्थान के अजमेर में हुई थी। विभाजन के बाद उनका परिवार कराची में बस गया। घर का पुश्तैनी काम ही हकीमी था सो नासिर साहब ने भी बाप दादा के बनाए कराची के निजामी दवाखाने में हकीमी की। कॉलेज के ज़माने में नासिर साहब ने नियमित रूप से क्रिकेट भी खेली। कराची के हमदर्द कॉलेज से हिकमत की पढ़ाई करने के दौरान ही उन्हें शायरी का चस्का लगा।
मेहदी हसन/ हिमानी कपूर |
हकीम नासिर |
जब से तूने मुझे दीवाना बना रक्खा है
संग हर शख़्स ने हाथों में उठा रक्खा है
उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी
नाम जिस ने भी मोहब्बत का सज़ा रक्खा है
इश्क़ के सामने कौन नहीं बेबस हो जाता है और इसी बेबसी पर उनकी एक ग़ज़ल और याद आ रही है जिसमें उन्होंने लिखा था
इश्क़ कर के देख ली जो बेबसी देखी न थी
इस क़दर उलझन में पहले ज़िंदगी देखी न थी
आप से आँखें मिली थीं फिर न जाने क्या हुआ
लोग कहते हैं कि ऐसी बे-ख़ुदी देखी न थी
हाकिम नासिर के इश्क़िया मिज़ाज की गवाही देते ये अशआर भी खूब थे..
ये दर्द है हमदम उसी ज़ालिम की निशानी
दे मुझ को दवा ऐसी कि आराम न आए
मैं बैठ के पीता रहूँ बस तेरी नज़र से
हाथों में कभी मेरे कोई जाम न आए
तो आइए अब बात करें उस ग़ज़ल की जिससे आज की बात शुरु हुई थी। एक अजीब सी तड़प है इस ग़ज़ल में।जिससे मोहब्बत थी उसका साथ छूट गया पर उसके बावज़ूद शायर को इस बात का यकीं है कि जिस शिद्दत से उसने मुझे प्यार किया था वो शिद्दत अपने मन में वो और किसी के लिए नहीं ला पाएगी।
अब अगर ये शायर की खुशफहमी है तब तो कोई बात ही नहीं पर अगर यही हक़ीक़त है तो फिर मन ये सवाल जरूर करता है कि इतने प्यारे रिश्ते को तोड़ने की जरूरत क्या थी? पर ये भी तो सच है ना कि रिश्तों की डोर कब पूरी तरह अपने हाथ में रही है?
अब अगर ये शायर की खुशफहमी है तब तो कोई बात ही नहीं पर अगर यही हक़ीक़त है तो फिर मन ये सवाल जरूर करता है कि इतने प्यारे रिश्ते को तोड़ने की जरूरत क्या थी? पर ये भी तो सच है ना कि रिश्तों की डोर कब पूरी तरह अपने हाथ में रही है?
हौसला देना उन्हें मेरे ख़ुदा मेरे बाद
कौन घूँघट को उठाएगा सितम-गर कह के
और फिर किस से करेंगे वो हया मेरे बाद
हाथ उठते हुए उन के न कोई देखेगा
किस के आने की करेंगे वो दुआ मेरे बाद
फिर ज़माने में मोहब्बत की न पुर्सिश* होगी
रोएगी सिसकियाँ ले ले के वफ़ा मेरे बाद
किस क़दर ग़म है उन्हें मुझ से बिछड़ जाने का
हो गए वो भी ज़माने से जुदा मेरे बाद
वो जो कहता था कि ‘नासिर’ के लिए जीता हूँ
उस का क्या जानिए क्या हाल हुआ मेरे बाद
* पूछ
बहरहाल मेहदी हसन साहब की ये ग़ज़ल आपने सुनी ही होगी।
हिमानी ने भी इस ग़ज़ल के कुछ अशआरों को बड़े दिल से निभाया है। हिमानी की आवाज़ का मैं तब से प्रशंसक रहा हूँ जब वे 2005 के सा रे गा मा पा में पहली बार संगीत के मंच पर दिखाई पड़ी थीं। पहली बार जब उनकी आवाज़ में जिया धड़क धड़क जिया धड़क धड़क जाये... सुना था तो रोंगटे खड़े हो गए थे।
हिमानी ने पिछले एक दशक में बैंड बाजा बारात और बचना ऐ हसीनों सहित सात आठ फिल्मों के लिए गाने गाए हैं पर एक दो गानों को छोड़कर उनके बाकी गाने उतने लोकप्रिय नहीं हुए। इंटरनेट के युग में उनके जैसे हुनरमंद कलाकार अब अपने सिंगल्स खुद ही निकाल रहे हैं। हिमानी का मानना है कि फिल्मों के बजाए Independent Music करने में सहूलियत ये होती है कि आप अपनी पसंद के गीत चुनते हैं और दर्शकों से सीधे मुखातिब होते हैं।
ये ग़ज़ल भी उन्होंने यू ट्यूब पर पहली बार ॠषिकेश में गंगा के किनारे यूँ ही रिकार्ड की थी पर जैसा मैंने आपको ऊपर बताया कि हाल ही में इसे उन्होंने शंकर महादेवन के घर में सुनाया। आप भी सुन लीजिए उनका ये प्यारा सा प्रयास...
आज तो ना हमारे बीच हकीम मोहम्मद नासिर हैं और ना ही मेहदी हसन साहब लेकिन जब तक उनकी गायिकी का परचम फहराने वाले ऐसे युवा कलाकार हमारे बीच रहेंगे उनकी याद हमेशा दिल में बनी रहेगी।
12 टिप्पणियाँ:
उम्दा !
Sohanlal Munday शुक्रिया !
Thanks for sharing
Himani 'Sa Re' program se hi humein bhi pasand hain...na jaane kuon playback mein utna naam na Kar payeen
Smita Jaichandran दरअसल आजकल इंटरनेट के इस युग में गायकों की तादाद बेहद बढ़ गयी है और उस हिसाब से मौके उतने नहीं हैं। हालात ये हैं कि बिना पैसे के भी लोग अपनी आवाज़ रिकार्ड कर रहे हैं ताकि उन्हें विजीबिलटी मिले।
दूसरी बात ये कि जिस तरह के गाने बन रहे हैं उसे गाने के लिए आपका हुनरमंद होना ही जरूरी नहीं रह गया है। मशीन से आवाज़ में आप बदलाव ला सकते हैं। हालांकि अरिजीत, श्रेया और सुनिधि जैसे अपवाद हैं जो इन मंचों से ही निकलकर उभरे हैं।
आजकल ज्यादातर गायक चाहे वो सोनू निगम या श्रेया घोषाल ही क्यूँ ना हों कान्सर्ट से ही अपनी रोज़ी रोटी कमा रहे हैं। ऐसे हालातों में यू ट्यूब की लोकप्रियता के बाद आशा की किरण यही है कि अब गैर फिल्मी सिंगल्स का भी दौर चला है जो मुझे लगता है कि लीक से हटकर गाने श्रोताओं तक ले जा पाएगा।
शुक्रिता अनिल जी पसंद करने के लिए !
बहुत खूब। इसे पहली बार ही सुना। बहुत अच्छे बोल और उससे भी अच्छी गायकी।
मेहदी हसन साहब को बहुत कम सुना है मैंने। वैसे उनकी रंजिश ही सही मेरी पसंदीदा गजल है। कुछ और ग़ज़लें भी शेयर कीजिएगा।
Swati Gupta मेहदी साहब की गाई मेरी कुछ पसंदीदा ग़ज़लें और नग्मे जैसे मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो, गुलों में रंग भरे, देख तो दिल की जाँ से उठता है, जब कोई प्यार से बुलाएगा, उज्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं आपको इस लिंक पर मिल जाएँगी
मेहदी हसन की ग़ज़लें
सच्ची अर्थपूर्ण व्याख्या।
धन्यवाद दिलीप जी !
Kha se late h aap? Itni pyari gajal& gaane Vale
अच्छे गायकों पर मेरी नज़र हमेशा बनी रहती है। हिमानी को पहली बार 2005 में सुना था तभी उनकी आवाज़ में एक गहराई महसूस हुई थी। आपको भी पसंद आई उनकी गायिकी जानकर अच्छा लगा। :)
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