वार्षिक संगीतमाला में पिछली पोस्ट थी माँ को याद करते एक संवेदनशील गीत की। उसके पहले चिट्ठिये, इक मलाल और तुम ही आना जैसे गीतों से आप मिल ही चुके हैं। प्रेम, वात्सल्य और विरह के रंगों के बाद अब बारी एक ऐसे गीत की जिसके शब्दों में इतनी ताकत है कि वो आपके शरीर में उर्जा का संचार कर दे।
प्रसून जोशी एक ऐसे गीतकार है जिन्होंने हिंदी कविता का परचम फिल्मी गीतों में बड़ी शान से फहरा रखा है। तारे ज़मीं से लेकर फिर मिलेंगे और लंदन ड्रीम्स से लेकर भाग मिल्खा भाग तक जिस खूबसूरती से उन्होंने ठेठ हिंदी शब्दों का प्रयोग किया है वो अस्सी के दशक से आज तक शायद ही किसी गीतकार के गीतों में मिलेगा। फिर मिलेंगे के गीत के लिए जब वो कहते हैं
झील एक आदत है तुझमें ही तो रहती है और नदी शरारत है, तेरे संग बहती है
उतार ग़म के मोजे जमीं को गुनगुनाने दे कंकरों को तलवों में, गुदगुदी मचाने दे
खुल के मुस्कुरा ले तू, दर्द को शर्माने दे...
तो दिल करता है कि उनको गले लगा लूँ। इतनी प्यारी कविता गीतों में कहाँ मिुलती है। लंदन ड्रीम्स में उनका चटपटा सा गीत था मन को अति भावे और मिसाल के तौर पर ये अंतरा देखिए कि कैसे उन्होंने इसमें संकेत, निकट, क्षण जैसे ठेठ हिंदी शब्दों का इस्तेमाल कितनी सहजता से कर दिया।
संकेत किया प्रियतम ने आदेश दिया धड़कन ने
सब वार दिया फिर हमने, हुआ सफल सफल जीवन
अधरों से वो मुस्काई काया से वो सकुचाई
फिर थोड़ा निकट वो आई था कैसा अद्भुत क्षण
मैं आज ये चर्चा इसलिए छेड़ रहा हूँ क्यूंकि इस साल भी मणिकर्णिका के लिए प्रसून ने एक गीत में अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए जोश भरते हुए ऐसे अंतरे लिखे हैं जिसे पढ़ कर वाह वाह निकलती है। फिल्म की कहानी से पनपा ये परिस्थिजन्य गीत इस संगीतमाला का हिस्सा है तो वो प्रसून के इन ओजमयी बोलों के लिए। उनकी लिखी इन पंक्तियों पर गौर फरमाइए
अग्नि वृद्ध होती जाती है, यौवन निर्झर छूट रहा है
प्रत्यंचा भर्रायी सी है, धनुष तुम्हारा टूट रहा है
कब तुम सच स्वीकार करोगे, बोलो, बोलो कब प्रतिकार करोगे?
गीत का दूसरा अंतरा भी उतना ही प्रभावी है
कम्पन है वीणा के स्वर में, याचक सारे छन्द हो रहे
रीढ़ गर्व खोती जाती है, निर्णय सारे मंद हो रहे
क्या अब हाहाकार करोगे?,बोलो, बोलो कब प्रतिकार करोगे?
प्रसून अपने गीतों में हिदी कविता की मशाल यूँ ही जलाए रहें आगे भी उनसे ऐसी आशा है। तो आइए सुनते हैं सुखविंदर और शंकर महादेवन के सम्मिलित स्वर में इस गीत को। इस फिल्म का संगीत दिया है शंकर अहसान और लॉय की तिकड़ी ने।
प्रथम पच्चीस के आस पास रहने वाले इन छः गीतों की कड़ियों में आख़िरी कड़ी होगी ऐसे गीत की जिसके बोल आप तभी समझ पाएँगे अगर फिल्म में नायिका की समस्या का आपको पहले से भान हो।
वार्षिक संगीतमाला 2019
01. तेरी मिट्टी Teri Mitti
02. कलंक नहीं, इश्क़ है काजल पिया
03. रुआँ रुआँ, रौशन हुआ Ruan Ruan
04. तेरा साथ हो Tera Saath Ho
05. मर्द मराठा Mard Maratha
06. मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए Bharat
07. आज जागे रहना, ये रात सोने को है Aaj Jage Rahna
08. तेरा ना करता ज़िक्र.. तेरी ना होती फ़िक्र Zikra
09. दिल रोई जाए, रोई जाए, रोई जाए Dil Royi Jaye
10. कहते थे लोग जो, क़ाबिल नहीं है तू..देंगे वही सलामियाँ Shaabaashiyaan
11 . छोटी छोटी गल दा बुरा न मनाया कर Choti Choti Gal
12. ओ राजा जी, नैना चुगलखोर राजा जी Rajaji
13. मंज़र है ये नया Manzar Hai Ye Naya
14. ओ रे चंदा बेईमान . बेईमान..बेईमान O Re Chanda
15. मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे Mirza Ve
16. ऐरा गैरा नत्थू खैरा Aira Gaira
17. ये आईना है या तू है Ye aaina
18. घर मोरे परदेसिया Ghar More Pardesiya
19. बेईमानी से..
20. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? Kaise Hua
21. तेरा बन जाऊँगा Tera Ban Jaunga
22. ये जो हो रहा है Ye Jo Ho Raha Hai
23. चलूँ मैं वहाँ, जहाँ तू चला Jahaan Tu chala
24.रूह का रिश्ता ये जुड़ गया... Rooh Ka Rishta
25 शर्त (Shart )
01. तेरी मिट्टी Teri Mitti
02. कलंक नहीं, इश्क़ है काजल पिया
03. रुआँ रुआँ, रौशन हुआ Ruan Ruan
04. तेरा साथ हो Tera Saath Ho
05. मर्द मराठा Mard Maratha
06. मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए Bharat
07. आज जागे रहना, ये रात सोने को है Aaj Jage Rahna
08. तेरा ना करता ज़िक्र.. तेरी ना होती फ़िक्र Zikra
09. दिल रोई जाए, रोई जाए, रोई जाए Dil Royi Jaye
10. कहते थे लोग जो, क़ाबिल नहीं है तू..देंगे वही सलामियाँ Shaabaashiyaan
11 . छोटी छोटी गल दा बुरा न मनाया कर Choti Choti Gal
12. ओ राजा जी, नैना चुगलखोर राजा जी Rajaji
13. मंज़र है ये नया Manzar Hai Ye Naya
14. ओ रे चंदा बेईमान . बेईमान..बेईमान O Re Chanda
15. मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे Mirza Ve
16. ऐरा गैरा नत्थू खैरा Aira Gaira
17. ये आईना है या तू है Ye aaina
18. घर मोरे परदेसिया Ghar More Pardesiya
19. बेईमानी से..
20. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? Kaise Hua
21. तेरा बन जाऊँगा Tera Ban Jaunga
22. ये जो हो रहा है Ye Jo Ho Raha Hai
23. चलूँ मैं वहाँ, जहाँ तू चला Jahaan Tu chala 02. कलंक नहीं, इश्क़ है काजल पिया
03. रुआँ रुआँ, रौशन हुआ Ruan Ruan
04. तेरा साथ हो Tera Saath Ho
05. मर्द मराठा Mard Maratha
06. मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए Bharat
07. आज जागे रहना, ये रात सोने को है Aaj Jage Rahna
08. तेरा ना करता ज़िक्र.. तेरी ना होती फ़िक्र Zikra
09. दिल रोई जाए, रोई जाए, रोई जाए Dil Royi Jaye
10. कहते थे लोग जो, क़ाबिल नहीं है तू..देंगे वही सलामियाँ Shaabaashiyaan
11 . छोटी छोटी गल दा बुरा न मनाया कर Choti Choti Gal
12. ओ राजा जी, नैना चुगलखोर राजा जी Rajaji
13. मंज़र है ये नया Manzar Hai Ye Naya
14. ओ रे चंदा बेईमान . बेईमान..बेईमान O Re Chanda
15. मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे Mirza Ve
16. ऐरा गैरा नत्थू खैरा Aira Gaira
17. ये आईना है या तू है Ye aaina
18. घर मोरे परदेसिया Ghar More Pardesiya
19. बेईमानी से..
20. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? Kaise Hua
21. तेरा बन जाऊँगा Tera Ban Jaunga
22. ये जो हो रहा है Ye Jo Ho Raha Hai
24.रूह का रिश्ता ये जुड़ गया... Rooh Ka Rishta
12 टिप्पणियाँ:
Mujhe vijayi bhav jayada acha lga ☹️
मैंने तो लिख दिया कि मुझे इस गीत में क्या पसंद आया अब आप भी बता दीजिए कि विजयी भव आपको क्यों अच्छा लगा🙂
पता नहीं ऐसा क्यों है, कोई गीत पहली बार सुनने के बाद अच्छा नहीं लगता जितना की आप के द्वारा उस गीत के बारे में जानने के बाद अच्छा लगता है।
इसी से पता लगता है हमें गीतों की समझ आप से कितनी कम है।
Great post
अरविंद पसंद सबकी अलग हो सकती है और होनी भी चाहिए। मेरी कोशिश रहती है कि अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कर दूँ कि किसी गीत को मैंने अपनी गीतमाला में क्यूँ रखा है।
इस प्रक्रिया में मेरी कोई बात पाठकों के दिल को छू जाती है तो वो भी उस नज़रिए को ध्यान में रखते हैं गीत सुनते वक़्त।
गुमनाम भाई तारीफ़ का शुक्रिया। अगर नाम भी साथ लिख दें तो आपको संबोधित करना सरल होगा मेरे लिए।
बोल, गायिकी और संगीत तीनों के लिहाज से शानदार गीत।ये भी पहली बार सुना मैंने। वैसे वीर रस मेरी कमजोरी है गाना तो अच्छा लगना ही था
Swati Gupta मुझे भी बचपन में दिनकर जैसा कोई कवि नहीं लगता था। अब तो सब रस भाने लगे हैं अगर दिल को छू जाएँ।
"झील एक आदत---" वाकई बड़े ख़ूबसूरत शब्द हैं।इस तरह मानवीकरण अलंकार का बहुत सुंदर प्रयोग किया है।
Disha मनुष्य के चित्त में स्थिरता और चंचलता दोनों भाव होते हैं। मेरी समझ से प्रसून ने मन की इसी स्थिरता को हमारी आदत माना है और उसकी तुलना शांत सी रहने वाली झील से की है। वहीं हमरी शरारत और चंचलता को उन्होंने बहती नदी के समकक्ष माना है। इस हिसाब से ये पंक्ति उपमा अलंकार के करीब बैठेगी। हाँ जमीं को गुनगुनाने दो में जरूर मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ है।
Manikarnika..! Bada hi khoobsoorat laga, geet!
अब आज का गीत सुनिएगा कुछ ही देर में एक अलग ही विषय पर बना गीत है :)
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