जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
आज गाँधी जयन्ती है और जैसे ही बापू की बात होती है उनका प्रिय भजन वैष्णव जन मन में गूँजने लगता है पर क्या आप जानते हैं कि इस भजन के जनक कौन थे। पन्द्रहवीं शताब्दी के लोकप्रिय गुजराती संत नरसी मेहता जिन्हें लोग नरसिंह मेहता के नाम से भी बुलाते हैं।नरसी मेहता को गुजराती भक्ति साहित्य में वही स्थान प्राप्त है जो हिंदी में सूरदास को। गाँधी जी ने उनके भजन के एक भाग को अपनी प्रार्थना सभाओं का हिस्सा बनाया और वो इतनी सुनी गई कि वैष्णव धुन गाँधी जी के विचारों का प्रतीक बन गयी।
आज मैंने कुलदीप मुरलीधर पाई एवम् उनके शिष्यों द्वारा गायी ये सम्पूर्ण रचना सुनी और मन इसमें डूब सा गया। कुलदीप एक शास्त्रीय गायक, संगीतकार व संगीत निर्माता भी हैं। बचपन से उनका झुकाव आध्यात्म की ओर था इसलिए भक्ति संगीत को उन्होंने अपने संगीत का माध्यम चुना। यू ट्यूब पर उनका भक्ति संगीत का चैनल खासा लोकप्रिय है। उनकी वंदे गुरु परंपरा से संबद्ध कड़ियों ने अपनी आध्यात्मिक परम्पराओं से जुड़ने का आज की पीढ़ी को मौका दिया है।
इस भजन को सुनने से पहले ये जान लेते हैं कि संत नरसी ने तब सच्चे वैष्णव की क्या परिभाषा गढ़ी थी
वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे
पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे
वैष्णव जन तो उसे कहेंगे जो दूसरों के दुख को समझता हो। जिसके मन में दूसरो का भला करते हुए भी अभिमान का भाव ना आ सके वही है सच्चा वैष्णव
सकल लोक माँ सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे
वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे
जिसके मन में हर किसी के प्रति सम्मान का भाव हो और जो परनिंदा से दूर रहे। जिसने अपनी वाणी, कर्म और मन को निश्छल रख पाने में सफलता पाई हो उसकी माँ तो ऐसी संतान पा कर धन्य हो जाएगी।
समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे
जिहृवा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे
जिसके पास सबको देखने समझने की समान दृष्टि हो, जो परस्त्री को माँ के समान समझे। जिसकी जिह्वा असत्य बोलने से पहले ही रुक जाए और जिसे दूसरे के धन को पाने की इच्छा ना हो।
मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ वैराग्य जेना तन मा रे
राम नामशुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तन मा रे
जिसे मोह माया व्याप्ति ही न हो, जिसके मन में वैराग्य की धारा बहती हो। जो हर क्षण मन में राम नाम का ऐसा जाप करे कि सारे तीर्थ उसके तन में समा जाएँ वही जानो कि सच्चे वैष्णव मार्ग पर चल रहा है।
वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे
भणे नर सैयों तेनु दरसन करता, कुळ एको तेर तार्या रे
वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।
जिसने लोभ, कपट, काम और क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली हो। ऐसे वैष्णव के दर्शन मात्र से ही, परिवार की इकहत्तर पीढ़ियाँ तर जाती हैं।
हालांकि नरसिंह मेहता ने सच्चे वैष्णव बनने के लिए जो आवश्यक योग्यताएँ रखी हैं वो आज के युग में किसी में आधी भी मिल जाएँ तो वो धन्य मान लिया जाएगा। कम से कम हम इस राह पर बढ़ने की एक कोशिश तो कर ही सकते हैं।
इस भजन में कुलदीप का साथ दिया है राहुल, सूर्यागायत्री और भाव्या गणपति ने। इतना स्पष्ट उच्चारण व गायिकी कि क्या कहने !साथ में ताल वाद्यों और बाँसुरी की ऐसी मधुर बयार कि मन इसे सुनकर निर्मल होना ही है।
हार्दिक धन्यवाद मनीष जी। मेरे बहुत प्रिय गायकों और उनके संगीत गुरु की चर्चा करने के लिए।बापू तो परम प्रिय हैं ही और जो नरसी मेहता बापू के प्रिय थे,उनका फिर कहना ही क्या।
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4 टिप्पणियाँ:
हार्दिक धन्यवाद मनीष जी। मेरे बहुत प्रिय गायकों और उनके संगीत गुरु की चर्चा करने के लिए।बापू तो परम प्रिय हैं ही और जो नरसी मेहता बापू के प्रिय थे,उनका फिर कहना ही क्या।
अच्छा जानकर प्रसन्नता हुई :)
वाह मज़ा आ गया सुन कर ये सुरीली पुकार 😍👏👏👏👏👏
भक्ति संगीत को यू ट्यूब के माध्यम से आम जन में प्रचारित करने में इस मंडली का महती योगदान है 🙂
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