विधु विनोद चोपड़ा अपनी फिल्मों के खूबसूरत फिल्मांकन और संगीत के लिए जाने जाते रहे हैं। बतौर निर्देशक परिंदा, 1942 A love story, करीब और मिशन कश्मीर का संगीत काफी सराहा गया था। इस साल थियेटर में रिलीज़ उनकी फिल्म शिकारा के गीत उतने तो सुने नहीं गए पर अगर आपको शांत बहता संगीत पसंद हो तो ये एल्बम आपको एक बार जरूर सुनना चाहिए। अगर मैं अपनी कहूँ तो मुझे इस संगीत एल्बम में ऐ वादी शहज़ादी... की आरंभिक कविता जिस अंदाज़ में पढ़ी गयी वो बेहद भायी पर जहाँ तक पूरे गीत की बात है तो इस गीतमाला में इस फिल्म का एक ही गीत शामिल हो पाया और वो है श्रद्धा मिश्रा और पापोन का गाया युगल गीत मर जाएँ हम..
मर जाएँ हम एक प्यारा सा प्रेम गीत है ये जो संदेश शांडिल्य की लहराती धुन और झेलम नदी में बहते शिकारे के बीच इरशाद कामिल के शानदार बोलों की वज़ह से मन पर गहरा असर छोड़ता है। दरअसल जब आप अपने अक़्स को भूल कर किसी दूसरे व्यक्तित्व की चादर को खुशी खुशी ओढ़ लेते हैं तभी प्रेम का सृजन होता है। इरशाद इन्ही भावनाओं को पहले अंतरे में उभारते हैं।
गीत के दूसरे अंतरे में उनका अंदाज़ और मोहक हो जाता है। अब इन पंक्तियों की मुलायमियत तो देखिए। कितने महीन से अहसास जगाएँ हैं इरशाद कामिल ने अपनी लेखनी के ज़रिए... तू कह रहा है, मैं सुन रही हूँ,मैं खुद में तुझको ही, बुन रही हूँ,....है तेरी पलकों पे फूल महके,...मैं जिनको होंठों से चुन रही हूँ,...होंठों पे आज तेरे मैं नमी देख लूँ,...तू कहे तो बुझूँ मैं, तू कहे तो चलूँ
संगीत संयोजन में संदेश शांडिल्य ने गिटार और ताल वाद्यों के साथ संतूर का प्रयोग किया है। गीत का मुखड़ा जब संतूर पर बजता है तो मन सुकून से भर उठता है। संतूर पर इस गीत में उँगलिया थिरकी हैं रोहन रतन की।
6 टिप्पणियाँ:
श्रद्धा मिश्रा की आवाज़ अलीशा चिनॉय की याद दिलाती है!!
@Manish हाँ कुछ वैसी ही तो है पर उन्हें और सुनूँगा तब कोई राय बना पाऊँगा।
Wah!
@Sumeet :)
गीत की धुन और मेल-फीमेल दोनों ही आवाज़ें बहुत प्यारी हैं
धुन और गायिकी आपको पसंद आई जानकर प्रसन्नता हुई।
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