वार्षिक संगीतमाला अब अपने दूसरे चरण यानी शुरु के बीस गानों के पड़ाव तक पहुँच चुकी है और इस पड़ाव से आगे का रास्ता दिखा रहे हैं सोनू निगम। सोनू निगम ज्यादा गाने आजकल तो नहीं गा रहे पर जो भी काम उन्हें मिल रहा है वो थोड़ा अलग कोटि का है। पियानो और की बोर्ड पर महारत रखने वाले संगीतकार मिथुन शर्मा को ही लीजिए। मेरी संगीतमाला में पिछले पन्द्रह सालों से उनके गीत बज रहे हैं पर ये पहला मौका है उनकी बनाई किसी धुन को सोनू निगम की आवाज़ का साथ मिल रहा है।
पिछले साल ये मौका आया फिल्म ख़ुदाहाफिज़ में। डिज़्नी हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई इस फिल्म का संगीत भी हैप्पी हार्डी एंड हीर की तरह काफी प्रभावशाली रहा। इस फिल्म के तीन गाने इस गीतमाला में शामिल होने की पंक्ति में थे पर इसी फिल्म का अरमान मलिक का गाया हुआ गाना मेरा इंतज़ार करना बड़े करीब से अंतिम पच्चीस की सूची के बाहर चला गया।
बहरहाल जहाँ तक इस गीत में सौनू और मिथुन की पहली बार बनती जोड़ी का सवाल है तो लाज़िमी सा प्रश्न बनता है कि आख़िर मिथुन को इतनी देर क्यूँ लगी सोनू को गवाने में ? मिथुन का मानना है कि सोनू निगम तकनीकी रूप से सबसे दक्ष गायक हैं। उनकी प्रतिभा से न्याय करने के लिए मिथुन को एक अच्छी धुन की तलाश थी जो ख़ुदाहाफिज़ के गीत 'आख़िरी कदम तक' पर जाकर खत्म हुई।
मिथुन ने जब सोनू को इस गीत को गाने का प्रस्ताव दिया तो वो एक बार में ही सहर्ष तैयार हो गए। वैसे तो मिथुन के संगीतबद्ध ज्यादातर गीत सईद क़ादरी लिखते आए हैं पर इधर हाल फिलहाल में अपने गीतों को लिखना भी शुरु कर दिया है। शायद आशिकी 2 में उनके लिखे गीत क्यूँकि तुम ही हो की सफलता के बाद उन्हें अपनी लेखनी पर ज्यादा आत्मविश्वास आ गया हो। अब दिक्कत सिर्फ ये थी कि सोनू निगम लॉकडाउन में दुबई में डेरा डाले थे जबकि मिथुन मुंबई में। पर तकनीक के इस्तेमाल ने इन दूरियों को गीत की रिकार्डिंग में आड़े नहीं आने दिया।
ख़ुदाहाफिज़ एक ऐसे मध्यमवर्गीय युवा दम्पत्ति की कहानी है जो शादी के बाद देश में बेरोज़गार हो जाने पर विदेश में नौकरी कर करने का फैसला लेता है। कथा में नाटकीय मोड़ तब आता है जब नायिका परदेश में गुम हो जाती है। पर नायक हिम्मत नहीं हारता और अपने जी को और पक्का कर जुट जाता है अपनी माशूका की खोज में। उसे बताया जाता है कि उसका क़त्ल हो चुका है। साथ साथ जीवन और मरण का जो सपना नायक ने देख रखा था वो पल में चकनाचूर हो जाता है। अपनी पत्नी की अंतिम यात्रा में नायक के मन में उठते मनोभावों को मिथुन कुछ इस तरह शब्दों में ढालते हैं।
जन्मों से जनम तक, सेहरे को सजा के कफ़न तक
तेरे संग हूँ आख़़िरी क़दम तक ....
ये रात काली ढल जाएगी
उल्फ़त की होगी फिर से सुबह
जिस देश आँसू ना दर्द पले
है वादा मैं तुझसे मिलुँगा वहाँ
ज़ख़्मों से मरहम तक, जुदा से मिलन तक
डोली में बिठा के दफ़न तक
तेरे संग हूँ आख़़िरी क़दम तक
तेरे संग हूँ आख़़िरी क़दम तक ...
गीत की शुरुआती पंक्तियाँ वाकई बेहद संवेदनशील बन पड़ी हैं। शब्दों के अंदर बिखरे भावनाओं के सैलाब को सोनू निगम ने अपनी आवाज़ में इस तरह एकाकार किया कि नायक का दर्द सीधे दिल में महसूस होता है। सोनू की सशक्त आवाज़ के पीछे मिथुन ने नाममात्र का संगीत संयोजन रखा है जो उनके प्रिय पियानो तो कभी गिटार के रूप में प्रकट होता है। अगर आप सोनू निगम की आवाज़ और गायिकी के प्रशंसक हैं तो ये गीत अवश्य पसंद करेंगे।
5 टिप्पणियाँ:
सोनू निगम आज भी मेरे सबसे प्रिय गायकों में से हैं। दिल को छूने वाला गीत।
@Manish निसंदेह उनकी गायकी का पैनापन बरक़रार है।आज भी हर गाने पर उनकी मेहनत साफ दिखती है।
यह संगीतमाला कौन बनाते हैं,आप या कोई संस्था,केवल जिज्ञासा।
जी मैं ही करता हूं । पिछले पंद्रह सालों से ये सिलसिला एक शाम मेरे नाम पर चलता आया है। गीतों के चयन की प्रक्रिया आप इस पुरानी पोस्ट से समझ सकते हैं
http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.com/2011/12/2011_31.html
बोल बहुत प्यारे लगे इस गीत के। सोनू निगम की आवाज़ बदली सी लगी इस गीत में। जो भी हो बहुत भावपूर्ण गीत था।
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