वार्षिक संगीतमाला की आठवीं पायदान पर है गीत फिल्म लूडो का जिसे अपनी शानदार आवाज़ दी है युवाओं के चहेते अरिजीत सिंह ने और जिसकी धुन बनाई प्रीतम ने अनुराग बसु के निर्देशन में। संगीतकार प्रीतम और निर्माता निर्देशक अनुराग बसु की जोड़ी जब भी किसी फिल्म के लिए बनती है उस फिल्म के संगीत का श्रोताओं को बेसब्री से इंतज़ार रहता है। प्रीतम यूँ तो ऐसे भी बेहद सफल संगीतकार हैं पर अनुराग के लिए उनका काम एक अलग स्तर पर ही पहुँच जाता है। इस करिश्माई जोड़ी की संगीतमय फिल्मों को याद करूँ तो हाल फिलहाल में जग्गा जासूस और बर्फी और उसके पहले Gangster और Life In a Metro जैसी फिल्मों का बेहतरीन संगीत याद आ जाता है।
लूडो के भी तमाम गाने पसंद किए गए। ज़ाहिर है इस गीतमाला में इस फिल्म के गीतों की भागीदारी आगे भी रहेगी। ये एलबम लोगों की नज़र में और चढ़ता यदि फिल्म को सिनेमाघरों में प्रदर्शित किया जा पाता। महामारी की वज़ह से अप्रैल में प्रदर्शित होने वाली ईस फिल्म को नवंबर में नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ किया गया।
फिल्म लूडो के इस गीत को लिखा है संदीप श्रीवास्तव ने जो प्रीतम की फिल्मों में पहले भी कुछ गीत लिख चुके हैं। संदीप पटकथा लेखक भी रहे हैं। बतौर गीतकार उन्होंने शिवाय, कहानी, न्यूयार्क और Life In a Metro के गीतों के लिये जाना जाता है। एकतरफे प्रेम में दूसरे की स्वीकृति की कितनी चाहत होती है ये गीत इसी भावना को व्यक्त करता है। मुखड़े में संदीप लिखते हैं कि अगर हाँ कहकर तुमने मेरी ज़िंदगी को आबाद नहीं किया तो फिर ये जीवन बर्बादी की राह खुद चुन लेगा। अरिजीत नायक की बैचैनी और तड़प को बड़ी खूबी से अपनी आवाज़ में उतारते हैं। नायक की मायूसी को शब्दों में उतारती संदीप की ये पंक्तियाँ ख़्वाबों को जगह ना मिली आँखों में, वहाँ पहले से ही सैलाब था...नग्मे बनाता फिरा साज़ों पे, दिल अपना फ़क़त मिज़राब था प्रभावित करती हैं।
गीतकार अक्सर अपने गीतों में नवीनता भरने के लिए उर्दू के अप्रचलित शब्दों का इस्तेमाल करते रहे हैं। संदीप ने भी यहाँ मिज़राब का प्रयोग किया है जिसका अर्थ तार वाद्यों को बजाने वाले छल्ले से है। शायद संदीप ये कहना चाहते हैं प्रेम रूपी संगीत में वाहवाही साज़ की हुई और उनका दिल उस छल्ले सा उपेक्षित रहा जिसने साज़ में अपने रंग भरे।
इस गीत का सबसे मजबूत पक्ष प्रीतम की धुन और संगीत संयोजन है जो एक बार सुनते ही मन में रमने लगती है। पश्चिमी बीट्स के साथ गिटार, वॉयला और क्लारिनेट गीत में मस्ती का रंग भरता है तो तीन मिनट के बाद बजती गुलाम अली की सारंगी दर्द का अहसास जगाती है। कहने की जरूरत नहीं कि अरिजीत ऊँचे सुरों जो कि उनका ट्रेडमार्क बन गया है आसानी से साधते हैं। तो आइए सुनते हैं ये पूरा गीत..
या तो बर्बाद कर दो या फिर आबाद कर दो
वो ग़लत था ये सही है झूठ ये आज कह दो
इतना एहसान कर दो इतना एहसान कर दो
पूरे अरमान कर दो
वो ग़लत था ये सही है झूठ ये आज कह दो
इतना एहसान कर दो इतना एहसान कर दो
पूरे अरमान कर दो
लब पे आ कर जो रुके हैं, ढाई वो हर्फ़ कह दो
मेरी साँसों से जुड़ी है तेरी हर साँस कह दो
मुश्किल आसान कर दो मुश्किल आसान कर दो
या तो बर्बाद कर दो या फिर आबाद कर दो
मीठा सा ये ज़हर मैं तो पीता रहूँगा
तू ख़ुदा ना सही मैं तो सजदे करूँगा
तुम जो शीरी ना हुए क्या हमको फरहाद कर दो
मेरी साँसों ...आबाद कर दो
तू ख़ुदा ना सही मैं तो सजदे करूँगा
तुम जो शीरी ना हुए क्या हमको फरहाद कर दो
मेरी साँसों ...आबाद कर दो
ख्वाबों को जगह ना मिली आँखों में
वहाँ पहले से ही सैलाब था
नग्मे बनाता फिरा साज़ों पे
दिल अपना फ़क़त मिज़राब था
मेरी बेजां हसरतों को, काबिल-ए-दार करदो
मेरी साँसों ...आबाद कर दो
4 टिप्पणियाँ:
इस साल के मेरे सबसे प्रिय गीतों में एक..!!
जानकर प्रसन्नता हुई मनीष
बहुत प्यारा गीत। अरिजीत ने बहुत अच्छा गाया है.. इस साल ये ही एक ऐसा गाना था जिसे बार बार सुना
हां बिल्कुल Swati। प्रीतम और अरिजीत ने मिलकर कमाल किया है इस फिल्म के संगीत में।
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