जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
हिंदी फिल्मों में ए आर रहमान का संगीत आजकल साल में इक्का दुक्का फिल्मों में ही सुनाई देता है। रहमान भी मुंबई वालों की इस बेरुखी पर यदा कदा टिप्पणी करते रहे हैं। तमाशा और मोहनजोदड़ो के बाद पिछले पाँच सालों में उनको कोई बड़े बैनर की फिल्म मिली भी नहीं है। दिल बेचारा पर भी शायद लोगों का इतना ध्यान नहीं जाता अगर सुशांत वाली अनहोनी नहीं हुई होती। फिल्म रिलीज़ होने के पहले रहमान ने सुशांत की याद में एक संगीतमय पेशकश रखी थी जिसमें एलबम के सारे गायक व गायिकाओं ने हिस्सा भी लिया था। रहमान के इस एलबम में उदासी से लेकर उमंग सब तरह के गीतों का समावेश था। इस फिल्म के दो गीत इस साल की गीतमाला में अपनी जगह बना पाए जिनमें पहला तारे गिन संगीतमाला की नवीं पायदान पर आसीन है।
इस गीत की सबसे खास बात इसका मुखड़ा है। कितने प्यारे बोल लिखे हैं अमिताभ भट्टाचार्य ने। इश्क़ का कीड़ा जब लगता है तो मन की हालत क्या हो जाती है वो इन बोलों में बड़ी खूबी से उभर कर आया है। जहाँ तक तारे गिनने की बात है तो एकाकी जीवन में अपने हमसफ़र की जुस्तज़ू करते हुए जिसने भी खुली छत पर तारों की झिलमिल लड़ियों को देखते हुए रात बिताई हो वे इस गीत से ख़ुद को बड़ी आसानी से जोड़ पाएँगे।
जब से हुआ है अच्छा सा लगता है
दिल हो गया फिर से बच्चा सा लगता है
इश्क़ रगों में जो बहता रहे जाके
कानों में चुपके से कहता रहे
तारे गिन, तारे गिन सोए बिन, सारे गिन
एक हसीं मज़ा है ये, मज़ा है या सज़ा है ये
अंतरे में भी अमिताभ एक प्रेम में डूबे हृदय को अपनी लेखनी से टटोलने में सफल हुए हैं।
रोको इसे जितना, महसूस हो ये उतना
दर्द ज़रा सा है थोड़ा दवा सा है
इसमें है जो तैरा वो ही तो डूबा है
धोखा ज़रा सा है थोड़ा वफ़ा सा है
ये वादा है या इरादा है
कभी ये ज़्यादा है कभी ये आधा है
तारे गिन, तारे गिन सोए बिन, सारे गिन
श्रेया घोषाल और मोहित चौहान पहले भी रहमान के चहेते गायक रहे हैं और इस युगल जोड़ी ने अपनी बेहतरीन गायिकी से रहमान के विश्वास को बनाए रखने की पुरज़ोर कोशिश की है।
रहमान अपने गीतों में हमेशा कुछ नया करने की कोशिश करते रहते हैं। यहाँ उन्होंने श्रेया की आवाज़ को अलग ट्रैक पर रिकार्ड कर मोहित की आवाज़ पर सुपरइम्पोज़ किया है। पर रहमान के इस नए प्रयोग की वज़ह से अंतरे में गीत के बोल (खासकर श्रेया वाले) उतनी सफाई से नहीं समझ आते। अंत में रहमान स्केल बदलकर गीत का समापन करते हैं।
मुझे इस गीत का पहले दो मिनटों का हिस्सा बहुत भाता है और मन करता है कि आगे जाए बिना उसी हिस्से को रिपीट मोड में सुनते रहें। काश रहमान इस गीत की वही सहजता अंतरे में भी बनाए रहते ! गीत का आडियो वर्जन एक मिनट ज्यादा लंबा है और इस वर्जन के के आख़िर में वॉयलिन का एक खूबसूरत टुकड़ा भी है जिसे संजय ललवानी ने बजाया है। तो आइए सुनते हैं इस गीत का वही रूप...
Sumit ..I loved the Mukhda very much but the experimentation in antara by ARR removed the soothing feel of the song. But still I like this song in totality that's why it features in Top 10 songs.
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4 टिप्पणियाँ:
इस गीत को सुनकर लगे रहो मुन्नाभाई...इस गीत को सुनकर लगे रहो मुन्नाभाई... की पल-पल हर-पल...की याद आती है! की पल-पल हर-पल...की याद आती है!
अच्छा मुझे उस गीत का ख्याल नहीं आ रहा। खोज कर सुनता हूं।
I thought it deserved better rank.
Sumit ..I loved the Mukhda very much but the experimentation in antara by ARR removed the soothing feel of the song. But still I like this song in totality that's why it features in Top 10 songs.
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