कई बार आपने देखा होगा कि कुछ गीत अगर बिना किसी संगीत संयोजन के गाए जाएँ तो उनकी धुन की मिठास को आप बड़ी गहराई तक महसूस कर सकते हैं। मुझे आज ऐसा ही एक गीत याद आ रहा है फिल्म छाया (1961) का जो कि गीत देखते वक़्त सलिल दा के आर्केस्ट्रा के बीच कहीं खोता सा महसूस हुआ था। वैसे तो छाया का नाम लेते ही आपको उस फिल्म का सबसे चर्चित गीत इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा.. याद आ गया होगा पर आज मैं उसकी बात नहीं कर रहा हूँ बल्कि उसी फिल्म के एक उदास नग्मे की याद दिला रहा हूँ जिसे तलत महमूद ने गाया था।
उस ज़माने में प्रेम पर आधारित फिल्मों में ड्रामा अमीरी गरीबी से ही पैदा होता था। या तो नायक धनवान होता था या फिर नायिका बड़े बाप की बेटी होती थी। थोड़ी बहुत इधर उधर की ट्विस्ट के साथ फिल्में बन जाया करती थीं।इस फार्मूले वाली छाया भी अमीर नायिका व गरीब नायक की प्रेम कहानी थी। ये गीत भी कुछ ऐसी ही परिस्थिति में फिल्म में आता है। नायक सुनील दत्त के प्यार की रुसवाई होती है और वो अपना टूटा सा दिल कर भरी महफिल में नायिका के सामने अपना ग़म गलत करने आ जाते हैं।
राजेंद्र कृष्ण ने बेहतरीन मुखड़ा लिखा था इस गीत का आँसू समझ के क्यूँ मुझे आँख से तूने गिरा दिया.... मोती किसी के प्यार का मिट्टी में क्यूँ मिला दिया। सहज शब्दों में लिखे गए गीत के अंतरे भी प्यारे थे। पर कमाल उस धुन का भी था जिसकी बदौलत गीत का दर्द हृदय में घुलता चला जाता था।
कुछ दिन पहले मैंने इसी गीत को शास्त्रीय गायक राहुल देशपांडे को की बोर्ड की हल्की टुनटुनाहट के साथ गाते सुना और मन कहीं और ही खो गया। आजकल ऐसी प्रस्तुति को नाममात्र के संगीत की वज़ह से Unplugged Versions का नाम देने का चलन है। राहुल यूँ तो अपने शास्त्रीय गायन के लिए जाने जाते हैं पर जब तब वो फिल्मी गीतों को भी अपनी आवाज़ से सँवारते रहते हैं। उनकी आवाज़ को सुन कर लगता है मानो युवा येसुदास को सुन रहे हों। ज़ाहिर है कि राहुल येसुदास जी के बड़े प्रशंसक हैं।
इस गीत के बारे में वो कहते हैं कि इसे गाने की इच्छा वर्षों से थी और आज से करीब बीस साल पहले उन्होंने इस गीत को किसी कार्यक्रम में गाया था। उस वक्त वे तलत साहब के गाने अक्सर सुना करते थे और जिस तरह वो आपनी आवाज़ के कंपन का इस्तेमाल अपने गीतों में करते थे उससे राहुल बेहद प्रभावित रहे। ये गीत उन सबमें राहुल का प्रिय रहा क्यूँकि एक तो ये उनके प्रिय राग यमन पर आधारित था और दूसरे इस गीत में जो मेलोडी है वो उदासी का भाव भरते हुए भी मन को एक सुकून भी देती है जो कि आजकल के गीतों में कम ही दिखाई देता है।
मोती किसी के प्यार का मिट्टी में क्यूँ मिला दिया
आँसू समझ के क्यों मुझे
जो ना चमन में खिल सका मैं वो गरीब फूल हूँ
जो कुछ भी हूँ बहार की छोटी सी एक भूल हूँ
जिस ने खिला के खुद मुझे, खुद ही मुझे भुला दिया
आँसू समझ के क्यूँ मुझे
मेरी ख़ता मुआफ़ मैं भूले से आ गया यहाँ
वरना मुझे भी है खबर मेरा नहीं है ये जहाँ
डूब चला था नींद में अच्छा किया जगा दिया
आँसू समझ के क्यूँ मुझे
वैसे भी साठ के दशक की शुरुआत में प्रदर्शित इस फिल्म के अच्छी गुणवत्ता वाले वीडियोज़ नेट पर उपलब्ध नहीं है पर एक ठीक ठाक आडियो मिला जिसमें तलत जी का गाया पूरा गीत है इस तीसरे अंतरे के साथ।
नग़्मा हूँ कब मगर मुझे अपने पे कोई नाज़ था
गाया गया हूँ जिस पे मैं टूटा हुआ वो साज़ था
जिस ने सुना वो हँस दिया, हँस के मुझे रुला दिया
आँसू समझ के क्योँ मुझे ...
8 टिप्पणियाँ:
वाह👌
वाह....राहुल देशपांडे जी....वाकई आपके द्वारा की गई प्रशंसा के अधिकारी हैं। आप शास्त्रीय संगीत के प्रकांड विद्वान तो हैं ही....साथ ही सुगम संगीत में भी अच्छी पकड़ रखते हैं। मराठी समझ में न आने पर भी आपके द्वारा गाए मराठी संगीत को सुनने में बड़ा आनंद आता है। 🙏
Disha आज इनकी महेश काले के साथ अलबेला सजन गाते हुए कमाल की जुगलबंदी सुनी। बड़े मँजे हुए कलाकार हैं।
बहुत सुन्दर ! जिस ज़माने में LP records होते थे तब एक Blue moods - Talat Mehmood record था जिसमें Best of Talat Mehmood गाने थे । यह भी उनमें से एक था । ख़ूबसूरत गीत !
Amita jee हाँ तब दूसरे घरों में इन रिकार्ड्स को बजते देखते थे। हमारे घर में तो बहुत बाद में टेप रिकॉर्डर आया। उसके पहले रेडियो में ही पुराने गाने सुनाई देते थे।
Thank you so much for the kind words Manish Kumar ji ☺️
आप जैसे गुणी कलाकार भारतीय संगीत को नई ऊंचाइयों पर ले जाएं ऐसी हम सभी संगीतप्रेमियों की शुभकामना है😊
क्या बात है 👏👏👏
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