वार्षिक संगीतमाला की शुरुआत तो हुई राताँ लंबियाँ से। चलिए आपको आज गीतमाला की दूसरी पेशकश में प्रेम के मैदान से ले चलें खेल के मैदान में।तीन दशक से भी ज्यादा हो गए जब पहली बार भारत ने विश्व कप क्रिकेट का वो अनूठा मुकाबला इंग्लैंड के ऐतिहासिक लार्ड्स के मैदान में जीता था और उस अप्रत्याशित जीत की यादें ताज़ा करने के लिए 83 बनाई गयी। फिल्म ऐसे समय आई जब ओमिक्रान का भय लोगों के दिलों में पाँव पसार चुका था। युवा भी इस अनदेखी विजय से उस तरह से नहीं जुड़ नहीं पाए जैसा अन्य खेल आधारित फिल्मों के साथ होता रहा है। शायद यही वज़ह रही कि फिल्म के साथ साथ उसका संगीत उतना लोकप्रिय नहीं हुआ जितना हो सकता था।
मैं तो फिल्म देखने के पहले ही प्रीतम द्वारा संगीतबद्ध और कौसर मुनीर के लिखे गीतों से सजे इस एलबम को सुन चुका था। पर फिल्म में बहुत सारे गीत इस्तेमाल हुए ही नहीं या हुए भी तो एक आध पंक्ति तक सीमित रह गए। इसी फिल्म का ऐसा ही गीत रहा जीतेगा जीतेगा, इंडिया जीतेगा। जीतेगा...मन में संघर्ष कर जीतने की भावना जगाता ऐसा गीत है जो अरिजीत की आवाज़ पाकर जीवंत हो उठता है।
निर्देशक कबीर खान ने फिल्म में इसका पूरा उपयोग नहीं किया तो उसकी एक वज़ह थी। सच बात तो ये है कि भारत की टीम तब वहाँ जीतने के लिए गयी ही नहीं थी। वहाँ जाने के पहले हमारा रिकार्ड विश्व कप में इतना बुरा था कि उससे पहले तक हमारी एकमात्र जीत पूर्वी अफ्रीका जैसी दूसरे दर्जे की टीम के खिलाफ़ दर्ज़ थी। टीम के मन में तो ये था कि कुछ मैच जीत लें तो बहुत है। बाहर की ट्रिप्स तब लगती नहीं थी। ऐसा पेड हॉलीडे और इंग्लैंड की गोरी मेमों से मिलने का मौका मिलना कहाँ था। पूरे दौरे में दिन में टीम के कप्तान कपिल हुआ करते थे और रात में संदीप पाटिल जो अपने युवा साथियों के मनोरंजन का बीड़ा उठाते थे। टीम की ऐसी मनःस्थिति के बीच जीतेगा इंडिया जैसा गीत निर्देशक कबीर खाँ फिल्म में डालते भी तो कहाँ? ☺
भगवान की दया से उस वक़्त ना आज का सोशल मीडिया ना दिन भर जीत का हुंकार भरते टीवी चैनल। हम जैसे क्रिकेट प्रेमियों की तब उम्मीद इतनी ही थी कि भारत बस पहले से बेहतर करे।
लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि कौसर मुनीर का लिखा इस गीत के खेल के मैदान में देश का Winning Anthem बनने के सारे गुण मौज़ूद हैं। सहज शब्दों में भी उनकी लेखनी दिल में वो भाव भरती है जिसके लिए ये गीत लिखा गया।
आ गये मैदान में, हम साफा बांध के
आगे आगे सबसे आगे, अपना सीना तान के
आ गये मैदान में, हम झंडे गाड़ने
हो अब आ गये है, जो छा गये है़
जो दम ये ज़माना देखेगा
देखो जूनून क्या होता है, ज़िद्द क्या होती है
हमसे ज़माना सीखेगा
जीतेगा जीतेगा, इंडिया जीतेगा
है दुआ हर दिल की, है यक़ीन लाखों का
जीतेगा जीतेगा, इंडिया जीतेगा
वादा निभायें आ
सर उठा के यूँ चलेंगे आ
फिर झुका ना पाये जो ये जहाँ
डर मिटा के यूँ लड़ेंगे आ
फिर हरा ना पाये जो ये जहाँ
हो अब आ ...इंडिया जीतेगा
प्रीतम का ताल वाद्यों की मदद से ताल ठोंकता संगीत और अरिजीत की उत्साही आवाज़ उसे और असरदार बनाती है। जब जब देश की टीम किसी भी खेल में विपक्षी टीम के साथ दो हाथ करेगी ये गीत दर्शकों और खिलाडियों में जोश भरने में पीछे नहीं रहेगा। तो आइए आज सुनते हैं फिल्म 83 का ये नग्मा
अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत नीचे से ऊपर के क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी। और हाँ अगर आप सब का साथ रहा तो अंत में गीतमाला की आख़िरी लिस्ट निकलने के पहले 2019 की तरह एक प्रतियोगिता भी कराई जाएगी जिसमें अव्वल आने वालों को एक छोटा सा पुरस्कार मिलेगा। ☺☺
2 टिप्पणियाँ:
गीत जीत का उत्साह जगाने वाला है! फ़िल्म देखने का प्रोग्राम बनाते-बनाते थियेटर्स ही बंद हो गये!! ��
बिल्कुल। कोई बात नहीं ये फ़िल्म तो OTT पर आएगी ही तब देख लेना🙂
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