मंगलवार, जुलाई 05, 2022

An Actor's Actor : संजीव कुमार की अधिकृत आत्मकथा

संजीव कुमार हमेशा से हिंदी फिल्म जगत के मेरे पसंदीदा अभिनेता रहे हैं। पत्रिकाओं में उन पर छपे आलेखों से उनके जीवन की थोड़ी बहुत झलकियाँ मिलती रहीं पर ऐसे शानदार अभिनेता पर किसी किताब का ना होना अखरता था। अभी हाल ही में मुझे पता चला कि हनीफ झावेरी और सुमंत बात्रा द्वारा पिछले साल ही ये किताब पेंगुइन द्वारा प्रकाशित की गयी है। हनीफ फिल्म पत्रकार तो हैं ही नाटककारों की संस्था IPTA से भी जुड़े रहे और उसी के माध्यम से संजीव कुमार से उनकी पहली मुलाकात भी हुई। किताब में उनके सहलेखक सुमंत बात्रा वैसे तो वित्तीय सलाहकार और वकील हैं पर संजीव कुमार के बहुत बड़े प्रशंसक भी।

संजीव कुमार को गुजरे दशकों हो गए इसलिए लेखक द्वय के लिए उनसे जुड़ी जानकारियाँ जुटाने का काम ज़रा मुश्किल था। इस काम में ज़रीवाला परिवार और संजीव के संगी साथियों ने हनीफ झावेरी की बड़ी मदद की। सुमंत किताब लिखने के दौरान बाद में जुड़े और उन्होंने बतौर फैन संजीव से जुड़ी जो जानकारियाँ सहेजी थीं वो किताब को अंतिम रूप देने में सहायक हुईं।


करीब दो सौ पन्नों की इस पूरी किताब को चार पाँच हिस्सों में बाँटा जा सकता है। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, स्कूल में अभिनय से उनके लगाव और फिर नाटकों में उनकी हिस्सेदारी से लेकर बी ग्रेड फिल्मों तक उनका सफ़र आरंभिक अध्यायों में समेटा गया है। जानकीदास को अपना सचिव बनाने के बाद हिंदी फिल्मों में किस तरह उन्होंने एक के बाद एक झंडे गाड़े इसकी तो गाथा है ही, साथ ही उन फिल्मों के बनने के दौरान हुए मनोरंजक वाकयों का भी जिक्र है। किताब उनकी फिल्मों के बाहर की ज़िदगी से रूबरू कराती हुई, बीमारी से लड़ते हुए उनके अंतिम दिनों तक ले जाती है।

संजीव का बचपन बड़े उतार-चढ़ाव के बीच बीता। गुजरात से ताल्लुक रखने वाले जरीवाला परिवार ने शुरुआत में व्यापार में अच्छी सफलता हासिल की पर पिता के असमय निधन से और अर्जित संपत्ति पर परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा हथियाने के प्रयास की वजह से उनकी मां शांताबेन को परिवार चलाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा।

इन्हीं संघर्षों के बीच उन्होंने नाटकों की दुनिया में कदम रखा। साथ ही फिल्मालय से अभिनय का प्रशिक्षण भी लिया। नाटकों में कमाल का अभिनय दिखाने के बावज़ूद उन्हें ढंग की फिल्में मिलने में पूरा दशक लग गया। 

गुलज़ार के साथ संजीव कुमार ने अपनी फिल्मी सफ़र के सबसे अहम किरदार निभाए

जो भी संजीव कुमार की अदाकारी को पसंद करता है वह निश्चय ही उनकी आवाज़ और संवाद को अपनी विशिष्ट शैली से बोलने का कायल होगा। क्या आप यकीन कर सकते हैं कि संजीव फिल्म उद्योग में आने के पहले खुद ही अपनी कमजोर आवाज़ के प्रति सशंकित थे? वे निरंतर अपनी संवाद अदायगी का अभ्यास करते। एक ही पंक्ति को तरह तरह से बोलते हुए आवाज़ को तीव्रता से मुलायमियत की ओर ले जाते और उसमें अलग-अलग भावनाओं का पुट भरते हुए बदलाव करते थे। उनकी फिल्मों में इस मेहनत का नतीजा स्पष्ट दिखता है।



किताब में असली आनंद तब आता है जब फिल्मों के इतर आप उनके व्यक्तित्व के उन पहलुओं को पढ़ते हैं जिनके बारे में आप उनके अभिनीत किरदारों से शायद ही अंदाज़ा लगा पाएँ। अपने सहकलाकारों की मदद और उनके आपसी झगड़े सुलझाने की उनकी प्रवृति, उनकी सादगी, सेट पर की उनकी भयंकर लेट लतीफी, सामिष भोजन से उनका अतिशय प्रेम, एक दो पेग ले लेने के बाद उनके चेहरे पर चिपकी प्यारी मुस्कुराहट.. कितना कुछ है इस किताब में जो बतौर व्यक्ति संजीव कुमार के और करीब ले जाता है।

संजीव कुमार के बारे में कहा जाता है कि वह हंसमुख इंसान थे। सेट पर हमेशा कई कई घंटे विलंब से आते पर आने के बाद इस तरह का व्यवहार करते जैसे कुछ हुआ ही ना हो सह कलाकारों के चेहरे पर चढ़ी त्योरियाँ उनकी प्यारी मुस्कुराहट से कुछ पल में ही गायब हो जाती थीं। किताब में उनके ज़िदादिल व्यक्तित्व के कई प्रसंग हैं।
शतरंज के खिलाड़ी में शबाना आज़मी से काम करने के दौरान पूछा गया कि उन्हें  कितने पैसे मिल रहे हैं? शबाना ने पलटकर कहा कि सत्यजीत रे की  फिल्म में काम करने के लिए अगर उन्हें अपने हाथ भी कटवाने पड़े तो वो कटवा लेंगी। पास खड़े संजीव कुमार ने झट से चुटकी ली कि उनके हाथ तो सिप्पी साहब ने शोले में पहले ही कटवा दिए थे इसलिए वह ऐसा नहीं कर पाएंगे।😀
त्रिशूल की शूटिंग में शशि कपूर को एक दिन जल्दी  निकलना था शशि की हड़बड़ी देख संजीव कुमार शर्ट और टाई के साथ लुंगी पहनकर बाहर निकले और कैमरामैन से कहा कि तुम ऊपर से हाफ शॉट लो ताकि लुंगी ना दिखे। वह अलग बात है कि शशि कपूर का हंसते-हंसते इतना बुरा हाल हो गया कि शॉट काफी देर के बाद पूरा हो पाया।😁
किताब का प्राक्कथन शत्रुघ्न सिन्हा द्वारा लिखा गया है जो उनके पारिवारिक मित्र थे।  संजीव कुमार की तरह सेट पर लेट आने में उनका नाम भी हिंदी फिल्म उद्योग मे् स्वर्णाक्षरों में लिखा जाता है। वे लिखते हैं कि खिलौना की शूटिंग के दौरान जब संजीव जी की इस आदत से निर्माता एल वी प्रसाद परेशान हो गए तो उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा से कहा कि तुम तो उसके दोस्त हो, तुम उसके घर जाकर उसे साथ लेते आया करो। शत्रु जब उनके घर पहुँचते तो शूटिंग के वक्त उन्हें चाय सिगरेट के साथ आराम करता हुआ पाते। शत्रु तब फिल्मों में नए नए थे। उनको तो मानो अपना गुरु ही मिल गया। नतीजन दोनों संग संग विलंब से आने लगे।

प्रसाद जब उन दोनों से सवाल करते तो वे कहते आज माहिम चर्च के पास दो टैक्सी टकरा गयीं तो कभी ये कि माहिम चर्च के पास बस दुर्घटना हो गयी। तंग आकर एल वी प्रसाद ने दोनों से कहा कि तुम लोग परिस्थिति नहीं बदल सकते कम से कम घटना का स्थान तो बदल दिया करो। 😂

संजीव कुमार खाने पीने के बेहद शौकीन थे। अक्सर रात बिरात दोस्तों के घर पहुंच जाते थे। उनके भोजन प्रेम के कई किस्से इस किताब में आपको मिल जाएँगे। एक तो ये रहा :)
एक बार मौसमी चटर्जी अपने पति के साथ घर से निकल ही रही थीं कि संजीव कुमार आ गए। उन्हें जाते देख बस इतना कहा निकल रही हो तो निकलो। बस अपनी कामवाली को कह दो कि कुछ नॉनवेज  बना दे। फिर वह बैठे, फिल्म के वीडियो देखे, खाए पिए और चलते बने। एक बार तो इतनी रात में आ गए कि मौसमी चटर्जी को कहना पड़ा कि आप सिर्फ खाने के लिए यहां आते हैं? अगर ऐसा है तो ड्राइवर को भेज दीजिए हम डिब्बा भिजवा देंगे। 😡
आज भी अंगूर की यादें होठों पर हँसी ले ही आती हैं।

जिन हसीनाओं को संजीव जी से निकटता बनानी होती थी वो उनको डिब्बे भिजवाया करती थीं। संजीव कुमार ने शादी क्यों नहीं की ये प्रश्न भी उनके चाहने वालों के मन में उठता रहा है। किताब में लेखकों ने इस प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश की है। प्रेम तो संजीव कुमार ने कई तारिकाओं से किया पर बात कभी बन नहीं पाई। नूतन तो पहले से शादीशुदा थीं और हेमा संजीव व उनके परिवार की शादी के बाद काम ना करने वाली शर्त को मान नहीं पायीं। सुलक्षणा पंडित वाले प्रसंग को एकतरफा बता कर किताब में ज्यादा विस्तार नहीं दिया गया है जो थोड़ा अजीब लगता है क्यूँकि सत्तर के दशक में संजीव कुमार से जुड़ी ख़बरों में सबसे ज्यादा चर्चे उन दोनों के ही होते थे।। 

खानपान पर उनका कोई कंट्रोल नहीं था।  हृदय की बीमारी उनका खानदानी रोग था। यही वज़ह थी कि अपने पिता व भाईयों की तरह ही वो उम्र में पचास का आँकड़ा छुए बिना ही चल बसे। उन्हें इस बात का आभास था
एक बार तबस्सुम ने संजीव कुमार से साक्षात्कार के दौरान पूछा कि वह अपनी उम्र से बड़े किरदार हमेशा क्यों निभाते हैं? संजीव का जवाब था  कि किसी भविष्यवक्ता ने कहा है कि मैं ज्यादा दिन नहीं जिऊंगा और इसीलिए मैं उस उम्र को पर्दे पर ही जी लेना चाहता हूं।

अगर आप संजीव कुमार के प्रशंसक हैं और उनके व्यक्तित्व, उनके शुरुआती संघर्ष और अपने सहकलाकारों के साथ उनके संबंध के बारे में जानना चाहते हैं तो ये किताब निश्चय ही पठनीय है। ए के हंगल, अंजू महेंद्रू, हेमा, राजेश खन्ना, नूतन, शत्रुघ्न सिन्हा, मौसमी चटर्जी, दिलीप कुमार, शर्मीला टैगोर, सारिका, शबाना आज़मी से जुड़े तमाम रोचक किस्से किताब मैं मौज़ूद हैं  जिनमें कुछ का जिक्र मैंने ऊपर किया।

बतौर लेखक हनीफ और बात्रा कहानी कहने की कला में औसत ही कहे जाएँगे, खासकर उन हिस्सों में जहाँ परिवार से जुड़े लोगों के कथ्य प्रस्तुत किए गए हैं। पर संजीव कुमार पर किया गया उनका शोध और उनके साथियों के संस्मरण इस किताब को बेहद रुचिकर बनाते हैं। वे बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने एक ऐसे अभिनेता के जीवन को उसके चाहने वालों के सामने प्रस्तुत किया है जिसके बारे में किताब की शक़्ल में पहले कुछ नहीं लिखा गया।

वैसे इस ब्लॉग पर मेरे द्वारा पढ़ी अन्य पुस्तकों का मेरी रेटिंग के साथ सिलेसिलेवार जिक्र यहाँ पर

An Actor's Actor : *** 
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10 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

मनीष जी,
बाकी तो सब ठीक पर क्या ब्लॉगर पर दिया आपका प्रोफाइल वास्तव में 'पूरा' है?

Manish Kumar on जुलाई 06, 2022 ने कहा…

सेटिंग का मसला है। परिचय का कुछ हिस्सा शायद नहीं दिख रहा।

Manish on जुलाई 06, 2022 ने कहा…

आप सिर्फ खाने के लिए यहां आते हैं❓ अगर ऐसा है तो ड्राइवर को भेज दीजिए हम डिब्बा भिजवा देंगे...और आजकल के एक्टर्स शारीरिक शौष्ठव का ध्यान रखने के लिए बड़ा नाप-तौल के खाते हैं❗😝संजीव कुमार साहब ने साबित किया की एक अभिनेता के लिए लुक और शारीरिक बनावट से कहीं ज़्यादा अभिनय क्षमता मायने रखती है❗😊

Manish Kumar on जुलाई 06, 2022 ने कहा…

बिल्कुल ठंडे ठंडे पानी से नहाना चाहिए में अपने निकले हुए पेट के साथ भी गाना हिट करवा गए। लोगों ने उनमें हीरो की नहीं बल्कि एक कुशल अभिनेता की छवि देखी जो अपने किरदार से पूरी तरह घुलमिल जाता था। 😊

Ranju Bhatia on जुलाई 06, 2022 ने कहा…

पढ़नी है यह किताब अगर हिंदी में भी है तो 😊👍

Manish Kumar on जुलाई 06, 2022 ने कहा…

Ranju Bhatia फिलहाल तो जो दो किताबें हैं संजीव कुमार पर वो दोनों अंग्रेजी में हैं।

Rashmi Sharma on जुलाई 09, 2022 ने कहा…

दिलचस्प होगी किताब।

Manish Kumar on जुलाई 09, 2022 ने कहा…

संजीव कुमार को चाहने वालों के लिए तो बिल्कुल।

Sushil Chhoker on जुलाई 09, 2022 ने कहा…

पोस्ट पढ़कर इस किताब को पढ़ने का मन हो गया है. वैसे एक बात पोस्ट से इतर पूछने लिए माफ़ी चाहूंगा. क्या हिंदी में आर डी बर्मन पर कोई किताब है? इंग्लिश में तो है लेकिन पता नहीं कैसी है?

Manish Kumar on जुलाई 09, 2022 ने कहा…

धन्यवाद 🙂
सुशील भाई मेरे पास भी पंचम की अंग्रेजी वाली किताब है। वो भी एक दशक पहले खरीदी थी। हो सकता है अब कोई हिंदी में भी किताब आई हो।

 

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