वैसे तो हर गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस के दिन शायद ही ऐ मेरे वतन के लोगों, मेरा रंग दे बसंती चोला, बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की, मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती जैसे लोकप्रिय गीत न बजते हों। पर कुछ गैर फिल्मी देशभक्ति गीत ऐसे भी हुए जो अपेक्षाकृत कम बजे पर उनके भाव और संगीत ने करोड़ों भारतवासियों के मन में अमिट छाप छोड़ी । आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर आपको अपनी पसंद का एक ऐसा ही देशभक्ति गीत आज सुनवा रहा हूँ ।
लता संगीतकार जयदेव के साथ
आपको याद होगा कि सन 62 में भारत चीन युद्ध के बाद ऐ मेरे वतन के लोगों गीत बना था और उसे भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अनुरोध पर लता जी ने सबके सामने गाया भी था। कहते हैं कि जब मंच से लता जी ने वो गीत गाया था तो पंडित नेहरू की आँखों में आँसू आ गए थे।
उसके बाद 1971 में जब बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए भारत और पाकिस्तान में युद्ध छेड़ा तो युद्ध के बाद देश के अमर शहीदों के नाम एक और प्यारा सा गीत लता जी ने गाया था। यह गैर फिल्मी गीत संगीतकार जयदेव ने संगीतबद्ध किया था और इसके बोल लिखे थे पंडित नरेंद्र शर्मा ने। क्या धुन बनाई थी जय देव साहब ने ! कमाल के बोल थे पंडित जी के और इस कठिन गीत को लता जी ने जिस तरह निभाया था शायद ही कोई और वैसा निभा सके।
लता पंडित नरेंद्र शर्मा को पिता के रूप में मानती थीं। जब भी वो किसी बात से परेशान होतीं तो वो पंडित जी के पास सलाह मांगने जाती थीं। वही संगीतकार जयदेव के लिए भी उनके मन में बहुत आदर था। नसरीन मुन्नी कबीर को दिए एक साक्षात्कार में लता जी ने बताया था कि
जयदेव वास्तव में जानते थे कि कौन से वाद्य यंत्र गाने में उपयोगी होंगे। वह कभी बहुतायत में वाद्य यंत्रों का उपयोग नहीं करते थे। वह बेहतरीन सरोद बजाते थे और ध्यान रखते थे कि गीत के बोल उत्कृष्ट रहें। जयदेव जी धाराप्रवाह उर्दू और हिंदी बोलते थे। उनका विश्वास था कि गीत के बोल के मायने होने चाहिए और महत्त्व भी।
शायद यही वज़ह थी कि जयदेव जी ने इस गीत के लिए पंडित नरेंद्र शर्मा जैसे मंजे हुए कवि को चुना। पंडित जी विविध भारती के जनक के रूप में मशहूर तो हैं ही, साथ ही वो अपनी लिखी हिंदी कविताओं के लिए भी जाने जाते थे। सत्यम शिवम सुंदरम, प्रेम रोग, सवेरा, भाभी की चूड़ियां जैसी फिल्मों के लिए उनके लिखे गीत आज भी उतने ही चाव से सुने जाते हैं।
जयदेव ने हिंदी की कई छायावादी कविताएं संगीतबद्ध की हैं। उन कविताओं में आशा भोसले का गाया हुआ मैं हृदय की बात रे मन जिसे जयशंकर प्रसाद ने लिखा था और महादेवी वर्मा कृत कैसे तुमको पाऊं आली मुझे बेहद पसंद है।
ऐ मेरे वतन के लोगों की तुलना में इस गीत का मूड भिन्न था। जहां वह गीत युद्ध में हारने के बाद लिखा गया था वहीं ये गीत भारत की जीत के उपलक्ष्य में बनाया गया था। नरेंद्र जी ने यहां उन शहीदों को याद किया है जिनके बलिदान की वजह से भारत युद्ध में विजयी हुआ था और बांग्लादेश अपनी मुक्ति के पथ पर आगे बढ़ पाया था। इसीलिए नरेंद्र जी ने गीत में लिखा .. वो गए कि रह सके, स्वतंत्रता स्वदेश की....विश्व भर में मान्यता हो मुक्ति के संदेश की। लता जी ने इसे भी एक सार्वजनिक सभा में इंदिरा गांधी के की उपस्थिति में लोगों को सुनाया था।
आप जब भी इस गीत को सुनेंगे, जयदेव की सहज पर तबले और बाँसुरी से सजी मधुर धुन आपका चित्त शांत कर देगी। पंडित नरेंद्र शर्मा के शब्द जहाँ अपने वीर सैनिकों के पराक्रम की याद दिलाते हुए मन में गर्व का भाव भरते हैं, वहीं वे परम बलिदान से मिली विजय के उत्सव में उनकी अनुपस्थिति का जिक्र कर आपके मन को गीला भी कर जाते हैं। भावों के साथ जिस तरह गीत के उतार चढ़ाव को लता जी ने अपनी मीठी आवाज़ में समेटा है वो देशभक्ति गीतों की सूची में इस गीत को अव्वल दर्जे की श्रेणी में ला खड़ा करती है।
जो समर में हो गए अमर, मैं उनकी याद में
गा रही हूँ आज श्रद्धागीत, धन्यवाद में
जो समर में हो गए अमर...
लौट कर ना आएंगे विजय दिलाने वाले वीर
मेरे गीत अंजुलि में उनके लिये नयन-नीर
संग फूल-पान के
रंग हैं निशान के
शूर-वीर आन के
जो समर में हो गए अमर...
विजय के फूल खिल रहें हैं, फूल अध-खिले झरे
उनके खून से हमारे खेत-बाग-बन हरे
ध्रुव हैं क्रांति-गान के
सूर्य नव-विहान के
शूर-वीर आन के
जो समर में हो गए अमर...
वो गए कि रह सके, स्वतंत्रता स्वदेश की
विश्व भर में मान्यता हो मुक्ति के संदेश की
प्राण देश-प्राण के
मूर्ति स्वाभिमान के
शूर-वीर आन के
जो समर में हो गए अमर, मैं उनकी याद में
गा रही हूँ आज श्रृद्धागीत, धन्यवाद में
तो कैसा लगा आपको ये देशभक्ति गीत?
10 टिप्पणियाँ:
मन को छू लेने वाला गीत।
हां, बिल्कुल।
ज्योति कलश छलके गीत भी शायद इन्होंने ही लिखा था ! प्रेम रोग और सत्यम शिवम् सुंदरम के लिए इनका लिखा गीत मुझे बेहद पसंद है !
हां बिल्कुल। प्रेम रोग में भंवरे ने खिलाया फूल, सत्यम शिवम सुंदरम में शीर्षक गीत के अलावा यशोमती मैया से बोले नंदलाला, फिल्म सुबह में इनकी लिखी प्रार्थना तुम आशा विश्वास हमारे भी मुझे बेहद प्रिय है।
जी.…बहुत सुंदर गीत है, ये और कम प्रचलित भी। अब शायद काफी लोग इसे सुनें।
हां पर कितनी प्यारी धुन, बोल और उस पर लता जी की भावपूर्ण गायिकी मन को नतमस्तक कर देती है, मातृभूमि के अमर बलिदान के प्रति!
देहरादून में अपने मंत्रालय के चल रहे आजादी के अमृत महोत्सव में आज राज्य के वित्त मंत्री के समक्ष इस गीत की प्रस्तुति करवाई। गीत साझा करने के लिए आभार।
विजय जी जान कर खुशी हुई।
दिल को छूने वाला गीत! पहली बार सुने हैं, गीत शुरू होते ही लता जी की आवाज़ और पंडित जी के बोलों नें बाँध लिया!😊❤️🙏
बिल्कुल मनीष, बोल, धुन व गायिकी सबका सम्मोहन एक साथ खींचता है अपनी तरफ इस गीत में।
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