शुक्रवार, अप्रैल 14, 2023

हसीन ख़्वाब को सच्चा समझ रहा है कोई... Haseen Khwab by Kavya Limaye

आजकल संगीत जगत में एक चलन देखने में आ रहा है कि अगर कोई गीत थोड़े गंभीर मूड का हो तो उसे ग़ज़ल  की श्रेणी में डाल दो भले ही वो गीत ग़ज़ल के व्याकरण से कोसों दूर हो। यहाँ तक कि ऐसी श्रेणी बनाकर विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कार भी बाँटे जा रहे हैं। ग़ज़ल की बारीकियों से आम जन भले वाकिफ़ न हों पर संगीत जगत से जुड़े लोगों में ऐसी अनभिज्ञता अखरती है। पर इस माहौल में भी अच्छी ग़ज़लें बन रही हैं और उसे युवा गायक बड़े बेहतरीन तरीके से निभा रहे हैं। हाँ ये जरूर है कि आज की शायरी का वो स्तर देखने को नहीं मिल रहा जिसकी वज़ह से हम सभी मेहदी हसन, नूरजहाँ गुलाम अली, जगजीत सिंह की गाई ग़ज़लों के मुरीद थे। 


ग़ज़ल की जान हैं उसमें समाहित शब्द और उनकी गहराई। जगजीत जी इस बात को बखूबी समझते थे इसलिए उन्होंने अपनी ग़ज़लों का चुनाव ऐसा किया जिनके मिसरों में खूबसूरत कविता तो थी पर बिना भारी भरकम शब्दों का बोझ लिए। बाकी कमाल तो उनकी रूहानी आवाज़ का था ही जो श्रोताओं के दिल तक सीधे पहुँचती थी। गीत तो धुन पर भी चल जाते हैं पर ग़ज़लें बिना गहरे भाव के दिल में हलचल नहीं मचा पातीं। 

मीर देसाई, योगेश रायरीकर और काव्या लिमये

ऐसी ही एक बेहतरीन ग़ज़ल से कुछ दिनों पहले मेरी मुलाकात हुई जिसे लिखा शायर संदीप गुप्ते जी ने और धुन बनाई योगेश रायरीकर ने। इसे अपनी आवाज़ दी है काव्या लिमये ने जिन्हें आपने इस साल टीवी पर बारहा देखा ही होगा। योगेश रायरीकर जी की धुन कमाल की है जिसे युवा संयोजक मीर देसाई ने अशआर के बीच गिटार, सैक्सोफोन और बाँसुरी का प्रयोग कर के और निखारा है। जैसे मैंने पहले भी कहा शब्द और उसे बरतने का गायक या गायिका का तरीका ग़ज़ल की जान होता है। संगीत का काम सिर्फ सहायक की भूमिका अदा करना होता हैं ताकि वो माहौल बन जाए जिसमें ग़ज़ल रची बसी है। इतनी कम उम्र में भी मीर देसाई ने इस बात को बखूबी समझा है।

भोपाल में पले बढ़े डा.संदीप गुप्ते को शायरी का चस्का किशोरावस्था में ही लग गया था। बाद में मुंबई नगरपालिका में बतौर अभियंता काम करते हुए उन्होंने अपना ये शौक़ जारी रखा। उनकी रचनाओं को सुरेश वाडकर जी ने भी अपनी आवाज़ दी है। उनकी इस ग़ज़ल के अशआर पर ज़रा गौर फरमाएँ।

हसीन ख़्वाब को सच्चा समझ रहा है कोई
फक़त गुमान को दुनिया समझ रहा है कोई

मेरे ख्यालों का इज़हार क्यूँ करूँ मैं फ़ज़ूल
मेरी ख़ामोशी को अच्छा समझ रहा है कोई

किसी का कोई नहीं हूँ यहाँ मगर फिर भी
न जाने क्यूँ मुझे अपना समझ रहा है कोई

सवाल ये नहीं किस किस को कोई समझाए
सवाल ये है कि क्या क्या समझ रहा है कोई

डा.संदीप गुप्ते

गुप्ते साहब का ख़ामोशी वाला शेर पढ़ते मुझे गीत चतुर्वेदी की किताब "अधूरी चीजों का देवता" याद आ गयी जिसमें उन्होने लिखा था "जिसकी अनुपस्थिति में भी तुम जिससे मानसिक संवाद करते हो, उसके साथ तुम्हारा प्रेम होना तय है"। किसी की ख़ामोशी को पढने की बात भी कुछ ऐसी ही है। ग़ज़ल का अंतिम शेर भी मुझे प्यारा लगा।वैसे गुप्ते साहब ने एक शेर और लिखा था इस ग़ज़ल में जिसे यहाँ शामिल नहीं किया गया। वो शेर था...

मेरी नज़र में बड़ी है हर इक छोटी खुशी
मेरे ख्याल को छोटा समझ रहा है कोई

काव्या एक संगीत से जुड़े परिवार से आती हैं। उनके माता पिता कुछ दशकों से गुजराती संगीत जगत में बतौर गायक सक्रिय हैं। वे इस बार के Indian Idol के अंतिम दस में शामिल थीं और वहाँ उन्होंने कहा भी था कि वो अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहती हैं। जिस तरह के गीत उन्होंने इस प्रतियोगिता में गाए उससे मेरे लिए ये अंदाज़ लगा पाना मुश्किल था कि वो ऐसी ग़ज़लों को भी शानदार तरीके से निभा सकती हैं। अच्छे उच्चारण के साथ जिस ठहराव की जरूरत थी इस ग़ज़ल को वो उनकी अदाएगी में स्पष्ट दिखी। काव्या कहती हैं कि ये उनके संगीत कैरियर की शुरुआत है और अभी उन्हें काफी कुछ सीखना है। अगर उनकी निरंतर अपने में सुधार लाने की इच्छा बनी रही तो वे संगीत के क्षेत्र में निश्चय ही कई बुलंदियों को छुएँगी ऐसा मेरा विश्वास है।

इस ग़जल की रिकार्डिंग तो बड़ौदा में हुई पर आखिरी स्वरूप में आते आते इसे करीब एक साल का समय लग गया। दो महीने पहले इसी साल इसे रिलीज़ किया गया। तो आइए सुनते हैं काव्या की आवाज़ में ये ग़ज़ल

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12 टिप्पणियाँ:

Amita Mishra on अप्रैल 15, 2023 ने कहा…

बहुत अच्छी और कर्णप्रिय गज़ल जो मुझे गीत सा भी लगा । मेरे ख़याल से इसे गज़ल और गीत का हाइब्रिड कहना ठीक रहेगा । काव्या की आवाज़ तो जैसे गज़ल गायकी के लिये ही गढ़ी गई है । बहरहाल मैंने इन्हें गीत गाते नहीं सुना है । सुन कर शायद मेरा विचार बदल जाये । आपने जब लिखा कि धुन बनाने में गिटार , सैक्सोफोन और बाँसुरी का प्रयोग किया गया है तो लगा कि गज़ल के लिये कुछ अटपटा सा काॅम्बिनेशन है पर सुनने के बाद तो यही कहूँगी कि भई कमाल किया है सैक्सोफोन बजाने वाले ने 👌 इतना माइल्ड बजाया है कि तीनों यन्त्रों की जुगलबंदी कमाल की हो गई है ।

Manish Kumar on अप्रैल 15, 2023 ने कहा…

Amita Mishra अमिता जी ग़ज़ल का एक व्याकरण होता है। उसके हर मिसरे एक बहर(मीटर) में होने चाहिए और उसका हर एक शेर अपने आप में सम्पूर्ण होता है जबकि गीत या नज़्म के बोल शुरू से अंत तक आपस में जुड़े होते है। इस दृष्टि से ये ग़ज़ल है न कि गीत।
हां वाद्य यंत्रों का संयोजन contemporary है और उसका उतना ही इस्तेमाल किया गया है जितना जरूरी है। काव्या ने शायद पहली बार ही कोई ग़ज़ल गाई होगी। इंडियन आइडल में इन्हें ज्यादातर fast numbers गाते देखा था।

ग़ज़ल आपको पसंद आई जान कर खुशी हुई।

बेनामी ने कहा…

Bahot khub

Manish Kumar on अप्रैल 16, 2023 ने कहा…

धन्यवाद

Disha Bhatnagar on अप्रैल 16, 2023 ने कहा…

बिल्कुल ठीक बात है.. Manish जी। विशेषकर आजकल फ़िल्मों में कभी बोल ग़ज़ल कहलाने के लायक नहीं होते तो कभी धुन.... या कभी दोनों ही।

Manish Kumar on अप्रैल 16, 2023 ने कहा…

Disha Bhatnagar बिल्कुल आजकल सही शायरी का चुनाव भी नहीं हो रहा। बोल हल्के होने से ग़ज़ल का मजा ही खत्म हो जाता है। ग़ज़ल में संगीत सिर्फ सहायक होना चाहिए। अगर बोलों पर हावी हो गया तो फिर कविता पर से focus हट जाता है। अच्छे संगीतकार इस बात को समझते हैं और उसी के अनुरूप अपने संगीत की रचना करते हैं।

Manish Kumar on अप्रैल 16, 2023 ने कहा…

Disha Bhatnagar दूसरी बात ये कि संगीत संयोजन का ग़ज़ल में कोई लिखित मापदंड नहीं है। जगजीत जी ने ख़ुद संगीत संयोजन में कई परिवर्तन किए। संतूर के साथ साथ वायलिन और कभी कभी की बोर्ड का जबरदस्त प्रयोग उनकी ग़ज़लों में मिलता है। कहने का मतलब ये कि संगीत संयोजन में आप नए प्रयोग कर सकते हैं पर ग़ज़ल के प्रारूप में रहकर।

पर ग़ज़ल लिखने के कुछ नियम हैं जो उसे एक नज़्म और गीत से भिन्न बनाते हैं। नई पीढ़ी के कई अच्छे गायकों से ये भूल होते मैने देखी है। अति तो तब है जब नज़्म या गीत को ग़ज़ल कह कर पुरस्कार बंटने लगें। ऐसे में मेरे जैसे ग़ज़ल प्रेमियों का दुख तुम समझ सकती हो।

Swati Gupta on अप्रैल 26, 2023 ने कहा…

बहुत सुंदर बोल और कमाल की धुन,बहुत सुंदर गाया काव्या ने कहीं-कहीं पर उन्हें सुनकर ऐसा लगा चित्रा जी गा रही हैं बिल्कुल उन्हीं की तरह काव्या की आवाज में भी गहराई और ठहराव है संगीत संयोजन में बदलाव होना स्वाभाविक बात है पर आपने ठीक कहा कि ऐसे प्रयोग ग़ज़ल के प्रारूप में रहकर ही होने चाहिए। कुल मिलाकर खूबसूरत संगीत और बेहतरीन गजल

Manish Kumar on अप्रैल 26, 2023 ने कहा…

Swati Gupta इस ग़ज़ल के संगीतकार को भी फोन पर किसी ने ऐसा ही कहा कि काव्या चित्रा जी की गायिकी की याद दिला रही हैं। ग़ज़ल आपको पसंद आई जान कर खुशी हुई।

Yogesh Rairikar on अप्रैल 26, 2023 ने कहा…

Thank you Manish Kumar ji for this detailed appreciation. Means a lot!

Manish Kumar on अप्रैल 26, 2023 ने कहा…

Yogesh Rairikar आपको बधाई कि आपने इस ग़ज़ल के लिए प्यारी कविता चुनी और अपनी कर्ण प्रिय धुन से उसे संवारा और फिर मीर और काव्या जैसे गुणी कलाकारों को मौका देकर हम जैसे श्रोताओं का दिल खुश कर दिया। भविष्य में भी आप ऐसे कमाल करते रहें ऐसी आशा रहेगी।

Ar Godara on मई 17, 2023 ने कहा…

चंद लाइनों में कितनी भावनाएं समेट दी है आपने, दिल को छू गई❣️
thanks for sharing

 

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