लबों यानी होंठों का चर्चा हिंदी फिल्मी गीतों और शेर ओ शायरी में अक्सर आता रहा है। जब स्कूल में थे तो पहली बार होठों से जुड़े हुए गीत से जगजीत जी की अनमोल आवाज़ से पहला परिचय हुआ था और वो गीत इस क़दर जुबां पर चढ़ गया था कि अपने शर्मीलेपन को परे रख अपनी शिक्षिका के सामने उसे गुनगुनाया था... होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो, बन जाओ मीत मेरे, मेरी प्रीत अमर कर दो।
लबों की बात करते हुए फिल्मों में और भी गीत आते रहे। मसलन गुलज़ार का लिखा लबों से चूम लो आँखों से थाम लो मुझको या फिर हाल फिलहाल में केके का गाया लबों को लबों से सजाओ।
अब अगर लबों से जुड़ी ग़ज़लों का रुख किया जाए तो मुझे चित्रा जी की गाई एक ग़ज़ल याद आ रही है जिसे मुजफ्फर वारसी ने लिखा था,
बात करने को भी तस्वीर का लहजा चाहे
और फिर मीर तक़ी मीर के उस अमर शेर से कौन वाकिफ़ नहीं होगा
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
पर आज मुझे इन लबों का ख्याल आया कैसे? दरअसल विशाल शेखर की संगीतकार जोड़ी के शेखर रविजानी ने पिछले महीने इसी ज़मीन से जुड़ी विशुद्ध रूप से ग़ज़ल तो नहीं पर एक ग़ज़लनुमा गीत रिलीज़ किया। इस गीत को लिखा है प्रिया सरैया ने और इसे गाया है मधुबंती बागची ने।
मधुबंती ने पढ़ाई तो इंजीनियरिंग की की है पर साथ ही साथ शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा भी लेती रही हैं। पिछले एक दशक से बंगाली फिल्मों में उन्हें गाने के मौके मिलते रहे हैं और विगत कुछ सालों से मुंबई में Independent Music की ओर बढ़ते इस दौर में बतौर गायिका और कम्पोजर अपना मुकाम बना रही हैं।
गीत की शुरुआत उनके शानदार आलाप से होती है और फिर आती है सारंगी की मधुर तान जिसे बजाया है दिलशाद खाँ ने। शेखर इस बात के लिए दोहरी तरीफ़ के काबिल हैं कि न केवल उन्होंने एक शानदार धुन बनाई बल्कि मधुबंती की आवाज़ का इस्तेमाल किया जो इस नज़्म को चार चाँद लगाता है। मधुबंती की आवाज़ मधुर चाशनी में घुली न हो के शुभा मुद्गल जैसी मजबूती के साथ कानों तक पहुँचती है।
इस गीत की रिकार्डिंग पुराने ज़माने की तरह Live हुई है। Music Arranger का किरदार निभाया है दीपक पंडित जी ने जो ख़ुद भी एक बेहतरीन संगीतकार हैं । वायलिन बजाने में उनकी माहिरी की वज़ह से जगजीत जी अपनी वादक मंडली में उन्हें हमेशा साथ रखते थे।
प्रिया सरैया के बोल बेहतरीन है। कितनी सादगी से वो दिल की बात जुबां पर लाने की सलाह देती हैं और अगर वो ना हो पाए तो अपने प्यार को लबों से महसूस करने की वकालत करती हैं। वक़्त का क्या भरोसा ये साँसें आज हैं कल ना रहें, या हमारी भावनाएँ ही मर जाएँ। अंतरे में चाँद के विविध रूपों से इश्क़ की तुलना भी अच्छी लगती है।
लबों से बात करो
या लबों को मिल जाने दो
दिल बदल जाए कहीं
लबों का जो काम है
आज उन्हें कर जाने दो
लबों से बात करो...
ये.. माहताब.. रोज़ आता है
कभी आधा.., कभी उजड़ा..
कभी ये पूरा.. है
इश्क़ कुछ ऐसा ही है
मानो कुछ ऐसा ही है
इश्क़ ये आज हमें
अपना, पूरा कर जाने दो
4 टिप्पणियाँ:
बेहतरीन
धन्यवाद
मुझे गायकी पसंद आई लेकिन आवाज़ नहीं।
मेरे ख्याल से सुनिधि चौहान इसे बहुत अच्छा निभाती। मुझे सुनिधि चौहान की गायकी शुरू से पसंद है क्योंकि उनके पास बेहतरीन आवाज, सुरों की समझ और सुंदर गायकी सब कुछ ही है।
वो तेरे मेरे इश्क़ का इक का शायराना दौर था तो कमाल ही गाया है सुनिधि ने। वैसे भी उनका तो स्तर ही अलग है।
मधुबंती की आवाज का texture अलग सा है। अगर पाकिस्तान की ग़ज़ल गायिकाओं को सुना हो तो उनकी आवाज़ भी थोड़ा भारीपन लिए होती है। शायद इसीलिए चुना शेखर ने इन्हें इस गीत के लिए। मैंने तो पहली बार ही सुना इन्हें और मुझे तो पसंद आई उनकी अदायगी ।
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